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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०३) समिति गुपति शुं रंग जी ॥ सु०॥ १२ ॥ अंग उपांग सिद्धांत वखाणे । ये सूधो उपदेश जी सूधे मारगे चाले चलावे । पंचा चार विशेष जी ॥ सु० ॥ १३ ॥ दशविध यति धर्म जिन नाख्यो । तेहना धारण हार जी। धरम थकी जे किमही न चूके । जो होये कोमि प्रकार जी ॥ सु ॥ १४ ॥ जीव तणी हिंसा जे न करे । न वदे मिरषा वाद जी। तृण मात्र अण दीधुं न लीये । सेवे नहीं अब्रह्म जी ॥ सु० ॥ १५ ॥ नवविध परिग्रह मूल न राखे । निशि लोजन परिहार जी। क्रोधमान मायाने ममता न करे लोन लगार जी ॥ सु०॥१६॥ ज्योतिष आगम निमित्त न लाखें । न करावे श्रारंज जी । औषध न करे नामी न जूवे । सदा रहे निरारंन जी ॥ सु०॥ १७ ॥ माकिणी शाकिणी नूत न काढे । न करे हलवो हाथ जी। मंत्र यंत्रने राखमी करी ते । नवी आपे परमार्थ जी ॥ सु० ॥ ॥ १७ ॥ विचरे गाम नगर पुर सघले ।न रहे एकण गम जी। चोमासा ऊपर चौमासुं। न करे एकण ग्राम जी॥सु०॥१५॥ चाकर न फरमासें नवि राखे । न करावे कोश् काज जी। न्हावण धोवण वेस बनावण । न करे शरीरनी साज जी ॥ सु॥२०॥ व्याजवटानुं नाम न जाणे । न करे वणज व्यापार जी। धर्म हाट मामीने बेग । वणिज ने परउपगार जी॥ सु० ॥२१॥ ते गुरु तरे अवरांने तारे । सायरमां जिम जिहाज जी। काष्ट प्रसंगें लोह तरे जिम । तेम सुगुरु संगते नव्य जी ॥ सु० ॥ २२ ॥ सुगुरु प्रकाशक लोचन सरिखा । ज्ञान तणा दातार जी । सुगुरु दीपक घट अंतर केरा । दूर करे For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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