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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०४) अंधकार जी ॥ सु० ॥ २३ ॥ सुगुरु अमृत सरिखा शीला । दीये अमर गति वास जी । सुगुरु तणी सेवा नित्य करतां। बूटे करमना पास जी ॥ सु० ॥ २४ ॥ सुगुरु पचीशी श्रवण सुणीने। कर जो सुगुरु प्रसंग जी। कहे जिन हरख सुगुरु सुपसायें। झान हरख उबरंगजी॥सु०॥॥इति श्रीसुगुरु पञ्चशी समाप्ता ॥ अथ श्रीसीमंधर जीनो वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ मारी वीनतमी अवधारो साहिब श्रीसीमंधर महाराज । त्रिजुवन साहिब अरज सुणी जो । दरसण दीजो महेर करी जी । अरज सुणी जो राज ॥१॥ मारी विनम् ॥ आप वस्या महाविदेह खेतरमे । हुँ इण जरत मकार । ओमेलो किम होवे साहिब । एही सबल विचार ॥२॥ मारी वीन ॥ नरत विचाले परबत आमो । नामे ने वैताध्य । पचीस जोजनको ऊंचो ने प्रन्नु पचास जोजन विस्तार ॥ ३ ॥ मारी वीन०॥ गंगा सिंधु दोनुं नदीयां । आमी ने किरतार । सहस अगवीस बीजी नदीयां । ए बेऊनो परिवार ॥४॥ मारी वीनम् ॥ शणी आगल परबत आमो । चुत-हिमवंत नाम । एक सहस बलि बावन जोजन । बारकला अनिराम॥५॥मारी वीन०॥ खेतर हेमवंत बलि प्रनु श्रामो । जुगड्यां केरो वास । इकवीस सै बलि पांच योजन । पांच कला सुवीलास ॥६॥मारीवीन॥ रोहिता रोहितांसा नाम । नदीयां ने असराल । उपन्न सहस वलि बीजी नदीयां श्रावु केम दयाल पामारीवीन० ॥ महाहेमवंत परबत आमो । मोटो अति विसतार । च्यार सहस दोय सैं दस जोजन । दसकला मनुहार ॥ ॥ मारीवीस० ॥ आठ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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