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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४५) वर्षमान वम जागी जी। पुत्र कलत्र सकल सुनागी। साधु गुणना रागी जी ॥ लाव ॥६॥ तस आग्रहश्री नावना जाय। ढाल बंधमां गाइ जी। जणसे गणसे जे एह ज्ञाता । लहेसे ते सुख साता जी॥नाव०॥७॥ मन शुधे पंचे नावना जावो पावन निजगुण पावो जी। मन मुनिवर गुण संग बसावो । सुख संपति ग्रह थावो जी ।। नावना ॥ ॥ इति श्रीपंमित देव चंद्रजी कृत साधुनी पंच जावना संपूर्णा ॥ ॥अथ पंडित श्रीदेवचंद्रजी कृत प्रभंजना महासतीनी सझाय लिख्यते ॥ ॥ नाटकीयानी देशी ॥ गिरि वैताढ्यने ऊपरे । चक्रांका नयरीरे लो। अहो चक्रा० ॥ चक्रायुध राजा तिहां । जीत्या सवी वयरीरे लो। अहो० ॥१॥ मदन लता तस सुंदरी। गुणशील अचंजारे लो ॥ अहो० ॥ पुत्री तास प्रनंजना । रूपे रति रंजारे लो ॥ अहो ॥२॥ विद्याधर नूचर सुता बहु मली एक पंतेरे लो ॥ अहो ॥राधा वेधे ममाविछं । वर वरवा खंतेरे लो॥ अहो० ॥ ३॥ कन्या एक हजारथी । प्रलंजना चालीरे लो॥ अहो ॥ आर्य खममां श्रावतां वनखंक विचालीरे लो ॥ अहो० ॥ ॥ निग्रंथी सुप्रतिष्ठिता । बहु मुणणी संगेरे लो॥ अहो ॥ साध विहारे विचरती । वंदे मन रंगेरे लो॥ अहो० ॥ ५॥ आर्या पूरे एवमो। उमा स्यो रे लो॥ अहो० ॥ विनये कन्या विनवे । वरवरवा बेरे खो ॥ अहो व० ॥६॥ एश्योहित जाणो तुमें । एहश्री नवि सिधिरे लो॥ अहो ए० ॥ विषय हलाहल विष तिहां । सी अमृत बुधिरे For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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