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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४) अनेक स्वरूप ए तुमे ॥ नित्य अनित्य अनादि नवि० ॥ सद सद जावे परिणम्या तुमे० ॥ मुक्त सकल उन्माद | नवि० ॥ १२ ॥ तप जप किरिया खप थकी तुमे ॥ अष्ट करम न विलाय लवि०। ते सहु आतमध्यानश्री तुमे० ॥ खिणमे खेरु थाय ॥ नवि०॥ १३ ॥ शुझातम अनुनव विना तुमे ॥ बंध हेतु शुक्ल चाल जम् ॥ श्रातम परिणामे रम्या तु०॥ एहज श्रव पाल ॥ नवि०॥ १४ ॥ श्म जाणी निज श्रातमा तुमे ॥ वरजी सकल उपाध नवि० ॥ उपादेय अवलंबने तुमे ॥ परम महोदय साध ॥ नवि० ॥ १५॥ जरत श्लासुत तेतली तु० ॥ इत्यादिक मुनि वृंद नवि०॥ प्रातम ध्यानथी ए तर्या नवि० ॥ प्रणमे ते देवचंद ॥ नवि० ॥१६॥ ॥ ढाल ६ ट्ठी शेलग सेजेजे सिद्धथया ॥ एदेशी ॥ नावना मुक्ति निशाणी जाण । जावो आशति आणीजी। योग कषाय कपटनी हाणी । थाये निर्मल जाणी जी॥ नावना ॥१॥ पंच लावना ए मुनि मनने ॥ संवर खाणी वखाणी जी। बृहत्कल्प सूत्रनीवाणी दीठी तेम कहाणी जी ॥ नावना ॥ ॥ कर्म कतरणी शिव निशरणी । जाण गण अनुसरणी जी। चेतन राम तणी ए घरणी । नव समुड मुःख हरणी जी॥ लव ॥ ३ ॥ जयवंता पाठक गुण धारी । राजसार सुविचारी जी। निर्मल ज्ञान धर्म संजाली । पाठक सहु हित कारी जी ॥ जावना० ॥४॥राजहंस सुगुरु सुपसाये । देवचंड गुण गावे जीनविक जीव जे लावन नावे । तेह अमित सुख पावे जी ॥ नावना० ॥ ५॥ जेसलमेर साह सुत्यागी। For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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