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( २४३ )
जविक तुमे० ॥ शुद्ध स्वरूप अनूप ॥ जविक तुमे० ॥ १ ॥ नरजव श्रावक कुल लह्यो तुमे० । लाधो समकित सार जवि० । जिन आगम रूची शुं सुणो तुमे० । आलस नींद निवार || नवि० ॥ २ ॥ समयांतर सह जान्ननो तुमे० ॥ दर्शन ज्ञान अनंत वि० ॥ तम जावे श्रिर सदा | तुमे० ॥ अक्षय चरण महंत || जवि० || ३ || तीन लोक त्रिहुं कालनी तुमे० ॥ परिणति तीन प्रकार जवि० ॥ एक समये जाणे तिये | तुमे० ॥ ना अनंत अपार || नवि० ॥ ४ ॥ सकल दोष हर शाश्वतो तुमे० ॥ वीरज परम श्रदीन जाविक० ॥ सूक्ष्म तनु बंधन विना तुमे० ॥ अवगाहना स्वाधीन ॥ जवि० ॥ ५ ॥ पुद्गल सकल विवेकी तुमे० ॥ शुद्ध मूर्ति रूप नवि० ॥ इंडिय सुख निस्पृह थ तुमे० ॥ श्रथ वाह स्वरूप ॥ जवि० ॥ ६ ॥ Sव्य ता परिणामश्री तुमे० ॥ गुरु लघुत्व नित्य नवि० ॥ सत्य स्वभाव मयी सदा तुमे० ॥ बोमी जाव असत्य ॥ जवि० ॥ ७ ॥ निजगुण रमतो रामए तुमे० ॥ सकल अकल गुण खा जवि || परमातम पर ज्योतिए तुमे० ॥ अलख वखा || जवि० ॥ ८ ॥ पंच पूज्यश्री पूज्यए तुमे० ॥ सर्व ध्येयश्री ध्येय जवि० ॥ ध्याता ध्यानरु ध्येए तुमे० ॥ निश्चे एक अजेय ॥ वि० ॥ ए ॥ अनुभव करतां एहनो तुमे० ॥ थाय परम प्रमोद जवि० || एक स्वरूप अभ्यास शुं तुमे० ॥ शिव सुख बे तस गोद ॥ जवि० ॥१०॥ बंध अबंध ए श्रातमा तुमे० ॥ करता करता एह जवि० ॥ एह जोगता अनो गता तुमे० ॥ स्यादवाद गुण गेह ॥ जवि० ॥ ११ ॥ एक
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