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( १३५ )
(हा - साखी) मेरे तो वर एकही हो गया नेम कुमार ॥ र नवर नही कोटी करो विचार || दीक्षा जद राजुलने धारि ॥ नेमकी ० ॥ ५ ॥ सहेल्यां सबही समजावे हियै राजुल के नहि ॥ जगत सब फुगे दरसावै मेरे मन नेम कुमर जावे || ( 5हा - साखी) || तोरुया कांकण दोरमा तोड्या नव सर हार || काजल टीकी पान सुपारी त्याग्यो सब सिणगार साख्यां सब लिखाणी ॥ नेमकी ० ॥ ६ ॥ तज्या सब शोले सिणगार आभूषण रत्न जगित सारा ॥ लगे मोहे सबही सुख बारा बोककर चालि निरधारा || ( डुहा - साखी ) |! मात पिता परिवार कुं तजतां न लागी वार || वियोग कर चली आप जाय चढि गिरनार || कुरति बोकि मा प्यारी ॥ नेमकी || 9 || दया दिल पशुवनकि आइ त्याग जब कीनो बिन मांहि ॥ नेमि जिन गिरनारे जाइ पशु वनके बंधन तुमवाइ || ( कुहा - साखी) || नेम राजुल गिरनार लीनो संजम दान ॥ नवलराम कर लावणी उपज्यो केवल ग्यान || जिनकी किरिया बुध सारी || नेमकी ० ॥ ८ ॥ इति पदं ॥ ॥ अथ पारणा महावीर स्वामीका ॥
॥ दोहा ॥ श्रीरिहंत अनंत गुण । अतिसय पूरण गात्र || मुनि जे ज्ञानी संजमी । ते कहिये उत्तम पात्र ॥ १ ॥ पात्र तली अनुमोदना करतो जीरासेव । श्रावक च्युय गति लदे । नवग्रै वेका देव ॥ २ ॥ दस चमासी वीरजी विचरत संजमवास || वेशालापुर आविया इग्यारमी च मास || ३ || (ढाल ) ॥ एकघर घोमाहातियाजी. (देशी) चोमासी इग्यारमीजी विचरत साहस
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