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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३६) धीर॥वेसाला पुर बाहिरे जी श्राव्या श्रीमहावीर ॥१॥ जगत गुरु त्रिशला नंदनजी जलेमें नेव्यां श्रीजिनराय ॥ सखीरी चोक पूरावो आय मेरे नाग्यअनोपम माय ॥ ज० ॥२॥ बलदेवनो वे देहरोजी तिहां प्रनुकाउसग्ग लीध ॥ पञ्चरकाण चोमासनो जी स्वामी ए तप कीध ॥ ज० ॥ ३ ॥ जीरण सेठ तिहां वसे जी पाले श्रामक धर्म ॥ श्राकारे तिण उलख्याजी जाणे श्री जिन धर्म ॥ ज० ॥४॥ आज अने उपवासीया जी स्वामी श्रीवर्धमान ॥ काले सही प्रनु जीमस्ये जी सेहथ देस्युं दान ॥ ज० ॥ ५॥ सदा सेठ इम चिंतवेजी होसी सफल मुक श्रास ॥ पक्षमास गिणतां थकां जी पूरी थर चोमास ॥ ज० ॥ ६॥ सामग्री आहारनी जी जीरण कीध तश्यार ॥ प्रनुनो मारग देखतो जी बेठो घरने बार ॥ ज० ॥ ॥ घर आवे ने पाहुणो जी निहुत्यो एकण वार ॥ प्रनु जी कांन पधारसी जी में निडुत्या वारंवार ॥ ज०॥७॥ पीने करस्युं पारणोजी हुँ प्रजूने पमिलाल ॥ होय मनोरथ एहवोजी तोय विन वरसे आज ॥ ज०॥ ए॥ अवसर उठ्या गोअरीजी श्रीसिघारथ पुत ॥ वेसालापुर आवतां जी पूरण घरे पहुत्त ॥ ज० ॥ १० ॥ मिथ्यात्वी जाणे नहीं जी जंगम तीरथ एह ॥ चेटी प्रते इम कहे जी कांक निदा देह ॥ ज० ॥ ११ ॥ चाटू जरने बाकलाजी प्रजूने आणी दीध ॥ नीरागी तेही लियाजी तिहां प्रनू पारणो कीध ॥ ज० ॥ १५ ॥ देव वजावे दुमुनि जी जै बोले कर जोमि ॥ हेम वृष्टि दुश् तिहांजी साढी बारे कोमि ॥ ज० ॥ १३ ॥ कहो सेव तुमे स्युं दियोजी कियो पारणो वीर ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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