SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Achar Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३७) लोकां प्रते श्म कहेजी में वहिराइ दीर ॥ ज० ॥ १४ ॥ राजा दिक सहुए कहेजी धन धन पूरण सेठ ॥ &ची करणी तें करी जी श्रवर सहू तुक हेठ ॥ ज० ॥ १५ ॥ जीरण सेठ सुणे तबे जी वाजिब उरुनि नाद ॥ अन्यत्र कियो प्रनू पारणो जी मनमें थयो विषवाद ॥ ज० ॥ १६॥ हूं जगमें अन्नागियो जी मेरे न आया साम ॥ कट्पवृक्ष किम पांमीये जी मारु मंगल गंम ॥ ज० ॥ १७ ॥ जेता मनोरथमें किया जी ते ता रह्या मन मांहि ॥ निरधन जिम जिम चिंतवे जी तिम तिम निर फल श्राय ॥ ज० ॥ १७ ॥ स्वामी तिहां कियो पारणो जी कियो अन्यत्र विहार ॥ या पास संतानिया जी तिहां मुनी केवल धार ॥ ज० ॥ १५ ॥ वेशालापुर राजियो जी लोका स्यु आणद ॥ राय प्रश्न पूछे इस्यो जी सुगुरु चरण अरविंद ।। ज० ॥ ॥ मेरे नगरमे को अबे जी जीव पुन्य जसवंत ॥ कहे केवली आज तो जी जीरण सेठ महंत ॥ ज० ॥ २१ ।। राय कहे किण कारणे जी जीरण सेठ महंत ॥ दान दियो. जिन वीरने जी पूरण सेठ महंत ॥ ज० ॥ ॥ राय प्रते कहे केवली जी पूरण दीनो दान ॥ हेम वृष्टि फल तेहने जी अवर न कोई प्रमाण ॥ ज० ॥ २३ ॥ देवलोक तिण बारमें जी जीरण घाट्यो बंध ॥ विना दान दियां लह्यो जी उत्तम फल संबंध ॥ ज० ॥ २५ ॥ घमी एक सुर मुनि जी जो नसुणतो कान ॥ लहि तो जीरण तो सही जी केवल अविचल ठाम ॥ ज० ॥ २५॥ राजा जीरणने दियो जी अधिक मान सन For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy