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(१५६) ॥ अथ नमीराजानी सझाय लिख्यते ॥ ॥ नयर सुदरसण राय । होजी मणिरथ राज करे तिहां । कीधो सबल अन्याय ।होजी जुगबाहु बंधव मारीयो।॥ १॥ मयण रेहा गइ नाश होजी जायो पुत्र उद्यानमें । पमीय विद्याधर पास । पण शील राख्यो सावतो। पदमरथ नूपाल ॥॥ होजी घोमे अपहयों आवीयो । तेणे ते लीधो बाल । होजी पुत्र पाली मोटो कीयो । शत्रु नम्या सदु ताम ॥३॥ होजी नमी एवं नाम थापीयुं । श्रयो मिथिलानो राय हो जी सहस अंतेजरसुं रमे । दाघज्वर चढ्यो देह हो जी करमथकी लूटे नहीं । अथिर सडु रिछि एह । होजी नमी राजा संजम लियो । इंश परख्यो आप ॥५॥ हो जी चढते परिणामे चढ्यो । प्रणम्या सुरनर राय । हो जी समयसुंदर कहे साधुना । नित्य नित्य प्रणमुं पाय ॥६॥ इति नमीराजानी सकाय सपूर्ण ॥
॥ अथ नभगति राजानी सझाय लिख्यते ॥ ॥ पुंडपुर वर्धन राजीयो । म्हांकी सहीयर सिंहरथ नाम नरिंदरे । इकदिन घोमे अप हो म्हांकी । पमीयो अटवी मांहीरे ॥१॥ परवत ऊपर पेरवीयो ॥ म्हांकी ॥ सतनूमिन श्रावास रे। कनकमाला विद्याधरी ॥ म्हांकी० ॥ प्रणमी प्रेम नवासरे ॥२॥ नगरी जणी राजा निसर्यो ॥ म्हांकी० ॥ नन गइ नाम कहाय रे। मारगमें आंबो मिट्यो ॥ म्हांकी० ॥ सुंदर फल फूल पान रे॥३॥कोयल करे टहुकमा म्हाकी॥ मांजर रही महकाय रे । राजा इक मांजर ग्रही ॥ म्हाकी० ॥
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