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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७५ ) वर समता जर संबर रमे रे । धरमे जीनी सात धात || दस ॥ ५ ॥ संवेगी सोजागी वैरागी जती रे । पाले निरमल सील । केवल दंसणपामी जवजल तरी जी पामे विचल लील || दस० ॥ ६ ॥ सुतां जातां सिद्धांत वाचतां जी । जलसे अंग अंग । नव नव मंगल पुण्य कलस सदा जी । जयतसी जय जय रंग ॥ दस० ॥ इति श्री दसवैकालिक सूत्र सजाय पंकित जयतसी जी कृत संपूर्णम् ॥ ॥ अथ श्रीद्विमुखराजानी सझाय लिख्यते ॥ ॥ नयरी कपिलानो धणी रे । जय राज गुण खाणी । न्याये नित पाले प्रजा रे । गुणमाला पटराणी ॥ १ ॥ डुमूहराय वीजो प्रत्येकबुद्ध | वैरागे मन वालियो रे । समकित पाले सूख ॥ ६० ॥ धरती खणतां निसर्यो रे । मुगट एक अभिराम मुख ॥ बीजो प्रतिबिंबी यो रे ति विमुखहुवो नाम ॥ 5० ॥ २ ॥ मुगट लेवा मांमीयो रे। चंरुप्रद्योत संग्राम | पिए अन्याय कृशीलीयो रे । किम सरे तेनां काम || 5 || ३ || इंद्रधन प्रति सिगारीयो रे । जोतां त्रिपत न थाय । सकल लोक खेले रमे रे । महोत्सव मांड्यो राय ॥ 5० ॥ ४ ॥ तिहां जाइ इंद्र धज देखीयो रे । पड्यो मलमूत्र मक्कार । हा हा शोना कारमी रे । ए सहु थिर संसार || 5 || ९ || बैरागे मन वालियो रे लीधो संजम जार । तप संजम कीधा करा रे । पाम्या जवनो पार || 5० ॥ ६ ॥ वी जो प्रत्येक बुकव्यो रे । डुमूह नामे रिषिराय । समय सुंदर कहे साधुने रे । नित नित प्रणमुं पाय ॥ 5० ॥ ७ ॥ इति विमुखराजानी सजाय संपूर्णम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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