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(१७४) तस पावर विध चित्त ॥ अरि० ॥ ३ ॥ पांचे व्रतपाले पांचइंजी दमे जी। गाम कंटक सहे धीर । रहे समसांणे पमिमा पभिवजे जी। तजे प्रतिबंध सरीर ॥ अरि ॥ ४ ॥ राग ष मदमत्सर माया परिहरे जी। नकरे विणज व्यापार । तजे तमासा हासा मसकरी जी। वांजे नहीं सतकार ॥ अरि॥५॥ सरम न लाखे धरम नाखे नलो जी। पामे परम पद सादि अनंत । आतम ध्याने आतम नघरे जी। वाचे सूत्र सिद्धांत ॥ अरि० ॥ ६॥ श्रीसिनवगणधर रच्यो जी । दसवैकालिक सूत्र । सखरो आचार प्ररूप्यो साधुनो जी। मनक तास्यो निज पूत ॥७॥ संवत सतर सतोतर समें जी। बीकानेर मकार पाठक पुण्यकलसगण । शिष्य जैतसीजी सिकाय रचि सुखकार ॥ ॥ अरि ॥ इति दसमाध्ययन सकाय संपूर्णम् ॥
॥अथ कलस लिख्यते ॥ ॥ दसवैकालिक सूत्र सुहामणो रे । रच्यो सिङनव स्वाम। अफेण व्यालु वेला दसे हुवा जी। तिण दीयो एहवो नाम॥१॥ दसवैकालिक सूत्र सुहामणो रे । ऊपर चूलिकावे रलीयामणी रे। जिम मेरू सिर चूल । सीमंधर स्वामी नणी जदणी जणी रे । सखरी चे वात समूल ॥ दस ॥ ५॥ अढारे ाणा हो पहिली चूलिकारे । जाणों चतुर सुजाण । हय गय वाहण रसी अंकुश सढेरे । वसी हुवे मुनि तिम गण ॥ दस० ॥ ३ ॥ अरती ने वारे विरती आदरे जी। लोपे नहीं जिन लीक । तप जप खप किरिया करे। ते वंदनीक पूजनीक ॥ दस ॥४॥ चूलिका बीजी बोध बीज संपजे रे । वीजी तीजी वात । मुनि.
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