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(४४) तेत्रीस सहस उसे चौरासी जोयण जाण । च्यार कला ए महा विदेह विखंच वखाण । बावीससे तेरे जोयण एक विजय पहुलाण । एहवि बत्तीस विजय विराजे जेहनें गण ॥ ५॥ मेरु विचेकर पूरब पछिम दोय विजाग । सोले सोले विजय तिहां विचरे श्रीवीतराग । सासते चोथे आरे तारे श्री अरिहंत । एहवो महा विदेह करम नूमि त्रीजी तंत ॥ ६॥ पूरब विदेह विजय पुष्कलावति आवमी गम । मुमरीकणी नगरी तिहां श्री सीमंधर स्वाम । वप्र विजय पंचवीसमी विजया पुरनो नाम । पछिम विदेह बीजो युगमंधर कीजे प्रणाम ॥७॥ तिमहीज नवमी वनविजय वलि पूरब विदेह । नयरि सु सीमा त्रीजो बाहु नमुं धरि नेह । नलिनावर्त्त चौवीसमी पश्चिम विदेह वखाण । वीतशोका नगरी तिहां चौथो सुबाहु जाण ॥ ॥ ए च्यारे जिणवर जंबुद्धीप मकार । महा विदेह सुदरशण मेरु तणे परकार । एहवो जंबुधीप महा गढ जेम गिरिंद । खाई रूपे दोय लख जोयण लवण समंद ॥ ए॥
॥ ढाल दीवाली दिन आवीयौ ए चाल ॥ ॥ दीपे बीजो दीप ए । धन धन धातकी खंग । पिहलो चिहुं लख जोयणे । मंगल रूपे मंम् ॥ १७ ॥ दी ॥ दोय जरत दोय ऐरवत दोय वलि महा विदेह । करम नूमी पद ने जिहां । नणहीज नामें एह ॥ ११॥ दी ॥ पूरब पश्चिम धातकी । खंग गिणीजे दोय । विजय मेरू पूरव दिसे । पत्रिम अचल जोय ॥ १५ ॥ दी० ॥ इक इक मेरुने आंतरे । करम नूमि तीन तीन । निज निज मेरुथी मांमिनें । लेखो चिटुं
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