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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३०५) दूहा ॥ तप बोस्यो त्रटकी करी, दानने तूं अवहील, पिण मुस आगल तुं किसुं, सांजल रे तूं शील ॥ १ ॥ सरसा जोजन ते तज्या, जगमें मीग नाद ॥ देहतणी शोना तजी, तुझमां किस्यो सवाद ॥२॥ नारीथकी मरतो रहे, कायर किस्युं वखाण, कूम कपट बहु केलवी, जिम तिम राखे प्राण ॥३॥ को विरलो तुझ आदरै, बंमी सहु संसार ॥ आप एक तूं नांजतो, बीजा लांजै चार ॥४॥ करम निकाचित तोमवा, नांजु जवजय लीम ॥ अरिहंत मुरूने आदरै, वरस बम्मासी सीम ।। ५ ॥ रुचक नंदीसर ऊपरै, मुझ लबधै मुनि जाय ॥ चैत्य जुहारै शाश्वता, आनंद अंग न माय ॥ ६॥ मोटा जोयण लाखना, लघु कुंथु श्राकार ॥ हय गय रथ पायकतणा, रूप करै अणगार ॥ ७॥ मुफ कर फरसै उपशमें, कुष्टादिकना रोग ॥ लब्धि अवीस ऊपजै, उत्तम तप संजोग ॥ ७॥ जे में तास्या ते कहूं, सुणजो मन उदास ॥ चमत्कार चित्त पामसो, देशो मुऊ साबास ॥ ७ ॥ ॥ ढाल ३ ॥ नणदलरी देशी ॥ दृढप्रहार अति पापीयो, हत्या कीधी चार हो सुंदर ॥ ते पिण तिण नव ऊधस्यो, मूक्यो मुगति मकार हो सुंदर ॥१॥ तप सरखो जगको नही, तप करै कर्म, सूम हो सुंदर ॥ तप करवू अति दोहिलूं, तपमां नही को कूम हो सुंदर ॥ त० ५॥ सात माणस नित मारतो, करतो पाप अघोर हो सुंदर ॥ अर्जुन माली में ऊधस्यो, वेद्या कर्म कगेर हो सुंदर ॥ तम्॥३॥ नंदिषेणने में कियो, स्त्रीवक्षनवसुदेव हो बृ० २० For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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