SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए) आनंदघनमय थाय ॥जी॥ बा ॥ ११॥ इति आत्मोपदेश सकाय सं०॥ सुणो वीर्य बोलुं विशालो विबुधो नरे बार योधे मिलि एक गोधो दसे गोधे लेखवो एक घोमो तुरंगे बारे मिलि एक पामो दसे पंच महिषं मदोन्मत्त नागो गज पांचसे एक केशरी त्यागो हरि वीससे एक अष्टापदेको दस लद अष्टापदे राम एको जला राम युग्मे समो वासुदेवो दितीय वासुदेवें गणि चक्री लेवो जला लद चक्री समो नागसुरो कोमनागाधिपे एक इंज पूरो अनंते सुइंजे मिलिवीर्य जे- टची आंगली वीर प्रनु वीर्य तेहनो ॥१॥ इति ॥ ॥ अथ श्रीथंभणा पार्श्वनाथजीरो स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ * ढाल । प्रनु प्रणमुंरे पास जिणेसर थंजणो । गुण गाश्वारे मुक मन ऊलट अति घणो । ज्ञानी विणरे एहनी आदिनको लहे । तोही पिणरे गीतारथ गुरु श्म कहैत्रूटकाइम कहै सास्त्र तणे प्रमाणे राम दसरथनंदनें। बांधवा पाजे शीत काजे समुन तट एकावनें । तिहां रह्या बांधव राम लमण सात्रि सेन्या अति घणी । प्रासाद एक उत्तंग तोरण थापना जिनवरतणी ॥१॥ ढाल ॥तिहां मूरतिरे मूल गुंजारे पासनी। मनम्तिरे थासापूरे आसनी । ते राजारे दिन प्रतिपूजा साचवे। कर जोमिरे वे बांधव इम बीनवे॥ त्रूटक वीनवे स्वामी तुह्म प्रसादे जलधि जल अंने किमे । तो पाज बांधुं लंक साधुं श्म कही प्रच पाय नमें। बहु पूज करतां ध्यान धरतां सातमास गया जिसे । नव दिवस अधिका श्रया ऊपरि । जलधि जल यंन्यो तिसे ॥२॥डाल For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy