________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१५६) ॥ अथ चेलणा सतीनी सज्झाय लिख्यते ॥ वीर वांदी वलतां अकां जी, चेलणा दीगे रे निग्रंथ ॥राति वन मांहि काउसग्ग रह्योरेजी, साधतो मुगतिनो पंथ ॥१॥ वीर वखाणी राणी चेलणा जी, सतिय सिरोमणि जाण ॥ चमारा. जानी साते सुता जी, श्रेणिक सीयल परिमाण ॥ वी० ॥॥ सीत उंगर सबलो पझे जी, चेलणा प्रीतम साथ ॥ चारत्रियो चितमे वस्यो जी ॥ सौमि बाहर रह्यो हाथ ॥ वी० ॥३॥ ऊबक जागी कहे चेलणा जी, किम करतो दुस्यै तेह ॥ कुसती मनमाहि ए कुण वस्यो जी ॥श्रेणिक पड्यो रे संदेह ॥ वी. ॥४॥ अंतेतर परो जायज्यो जी, श्रेणिक दियो रे आदेस ॥ जगवंत सांसो लांजियो जी, चमकियो चित्त नरेस ॥वी०॥५॥ वीर वांदी वलतां थकां जी, पैसतां नगर मकार ॥ धुंनो घोर देखी करी जी, जा जा रे अजयकुमार ॥ वी० ॥६॥ तातनो वचन पाली करी जी, व्रत लियो अन्नयकुमार ॥ समयसुंदर कहे चेलणा जी, पामियो जवतणो पार ॥ वी० ॥ ७ ॥ इती चेलणा महासती सज्काय संपूर्ण ॥
॥अथ वैराग्य सज्झाय ॥ ॥ नूलो मनलमरा कां जमै, नमियो दिवस ते रात ॥ मायारो लोनी प्राणियो, नमियो परिमल जात ॥ १॥ जू० ॥ कुंल काचो काया कारमी, जेहना करो रे जतन्न ॥ विणसतां वार लागे नही निरमल राखो रे मन्न ॥२॥०॥ केहना गेरू केहना वारू, केहना माय नै बाप ॥ जीव जासी एकलो, साथे पुन्यने पाप ॥३॥ नू०॥ आस्या तो डूंगर
For Private And Personal Use Only