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( १५७ )
जेवमी, मरवो पगला रे देव ॥ धनं संची संच कां करो, करवी देवनी वेठ ॥ ४ ॥ ० ॥ लखपति छत्रपती सब गए, गए लाखो के लाख ॥ गरब करी गोखै बैठता, नए जल बल राख ॥ ५ ॥ नू० ॥ जवसायरजल दुख जरयो तिरवो बे रे जेह ॥ वीचमें बीह सबलो, कर में वाय ने मेह ॥ ६ ॥ जू० ॥ उलट नहि मारग चालवो, जायवो पहिले रे पार ॥ श्रगल नहि हट वांणियो || संबल लेग्यो रे लार ॥ 9 ॥ ० ॥ मूरख कहे धन माहरो, धन केहनो हतो न श्राय ॥ वस्त्र विना जाय पोढवो, लखपति लाकर माय ॥ ८ ॥ ० ॥ महमंद कहै वस्तु वोरीय, जे कुछ वे रे साथ || अपणो लाज उवारियै, लेखो साहिब हाथ ॥ ० ॥ ए ॥ इति ॥
॥ अथ बाहुबलि सज्झाय ॥
॥ राजता अति खोजिया, जरत बाहूबली झूले रे ॥ मूंठी उपामी मारिवा, बाहूबली प्रतिबूजे रे ॥ १ ॥ वीरा म्हारा गजथ की ऊतरो, ब्राह्मी सुंदरी जासै रे ॥ रूपन जिनेसर मोकली, वाहूबलीने पासै रे || वी० ॥ गज चढ्यां केवल न होई रे ॥ वी० ॥ २ ॥ लोच करी चारित्र लियो, वलि आयो अमिनो रे ॥ लघु बांधव वांदू नही, काउसग्ग रह्यो शुभ ध्यानो रे ॥ ३ ॥ वी० ॥ वरस दिवस काजसग्ग रह्यो, वेलमियां वींटा रे | पंखी माला मांदियां, सीत ताप सूकाणो रे ॥ वी० ॥ ४ ॥ साधवी वचन सुया इसा, चमक्यो चित्त मकारो रे ॥ हय गय रथ में परिहरया, नवि मूंक्यो अहंकारो रे ॥ वी० ॥ ५ ॥ वैरागे मन वालियो, मूंक्यो निज निमांनो रे ॥ पांव
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