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(१८) जपानी वांदिवा, ऊपनो केवलज्ञानो रे ॥ वी ॥६॥ पदुतो केवली परखदा, बाहुबल शषिराया रे ॥ अजर अमर पदवी वही, समयसुंदर बंदे पाया रे ॥ ७॥ वी० ॥ इति ॥
॥अथ अरणक मुनि सज्झाय ॥ ॥ अरणक मुनिवर चाल्या गोचरी, तमके दाजे सीसो जी॥ पायनजराणा रे वेलूपरजलै, तन सुकमाल मुनीसो जी ॥ अर० ॥१॥ मुख कमलाणो रे मालती फूल ज्यूं, ऊ नो गोखने हेठो जी॥ खरै उपहरै रे दीगे एकलो, मोही माननी मीगे जी॥॥१०॥ वयणरंगीली रे नयणे विधियो, शषि घंव्यो तिण वारो जी ॥ दासीने कहे जाय छतावली, रिषि तेमी
आंणो जी ॥३॥ १० ॥ पावन कीजे झषि घर आंगणो, वहिरो मोदक सारो जी ॥ नवजोवन रस काया कांइ दहो, सफल करो अवतारो जी॥४॥अ० ॥ चंजावदनी रे चारित चूकन्यो, सुख विलसै दिन रातो जी ॥ इक दिन गोखै रमतो सोगढ़, तव दीगे निज मातो जी ॥ ५॥ ॥ अरणक ५ करती माय फिरे, गलियै ५ मकारो जी ॥ कहि किण दीको रे माहरो अरणलो, पूबै लोक हजारो जी॥६॥ १० ॥ उतर तिहाथी रे जननीरे पाय नमे, मनमें लाज्यो तिवारो जी॥ धिग् २ पापी रे माहारा जीवने, एह में अकारज धारयो जी ॥७॥०॥ अगन धुखंती रे सिवा उपरै, अरणक अण सण कीधो जी ॥ समयसुंदर कहे धन ते मुनिवरू, मन वंचित फल सीधो जी ॥७॥ ॥ इति अरणक मुनि सज्काय संपूर्णम् ॥
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