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(१एए) ॥ अथ इलापूत्र सज्झाय लिख्यते ॥ नांमश्लापुत्र जांणिय, धनदत्तसेठनो पूत ॥ नटवी देखी रे मोहियो, नहि राखे घरसूत ॥१॥ करम न छूटे रेप्राणिया पूरब नेह विकार ॥ निज कुल बंमी रे नट थयो, नाणी सरम लिगार ॥ क० ॥ २ ॥श्क पुर आयो रे नाचवा, जंचो वंस विशेष ॥ तिहां राय जोवा रे आवियो, मिलिया लोक अशेष ॥ क० ॥३॥ दोय पग पहरी रे पावमी, वंस, चढयो गजगेल । निरधारा ऊपर नाचतो, खेले नवनवा खेल ॥ क० ॥४॥ ढोल बजावे रे नाटवी, गावे किन्नर साद ॥ पायतल घूघर घमघमें, गाजै अंबर नाद ॥ क० ॥ ५॥ तव तिहां चिंते रे राजियौ, लुनध्यो नटवी रे साथ ॥ जो नट पमै रे नाचतो, तो नटवी मुक हाथ ॥ क० ॥ ६॥ दांन न आपै रे जूपती, नट जांणे नृप वात ॥ हूं धन वंबु रे रायनो, राय वं मुफ घात ॥ क० ॥ ॥ तिहांथी मुनिवर पेखियौ, धन २ साधु नीराग ॥ धिक् २ विषया रे जीवने, मन आण्यो वैराग ॥ क० ॥७॥ संबर लावै रे केवली, ततखिण कर्म खपाय॥ केवलि महिमा रे सुर करै, समयसुंदर गुण गाय ॥क० ॥ए॥ इति ।।
॥ अथ मेघकुमार मुनि सज्झाय लिख्यते ॥ वीरजिनंद समोसरया जी, वंदे मेघकुमार ॥ सुणी देशन वैरागीयौ जी, ए संसार असार रे मायमी ॥ अनुमति द्यो मुक आज ॥ संयम विषम अपार रे ॥ मा० ॥ अ० ॥१॥ व तूं केणे नोलव्यौ रे,श्रेणिक तात नरेस ॥ कां ऊणौ किण दूहव्यो रे, हूं नवि द्यु आदेश रे जाया ॥ संयम विष ॥ किम निरबा
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