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(ए३) पीटे रे दीन स्वरे रोवे खमी । बूढा पणेरे मन गमतो बालक मूओ। हुँतो एकज रे तिण अधिकेरो मुख दुई ॥ नबालो ॥ मुख हुवो देखी रोहिणी कहे इम प्रीतम नणी । ए नार नाचे अने कूदे कहो किम मोटा धणी । एहवो नाटक आजतांई में कदे देख्यो नहीं । मुझने तमासो अने हासो देखता आवे सही ॥ १० ॥ ढाल ॥ण वचने रे रीसाणो राजा कहै । तूं पापणी रे परतणी पीमा नवि लहै । ए मुखणी रे पूत्र मुए तम फम करे। जब वीतेरे वेदना जाणी जे तरे ॥ जहालो ॥ जाणी जे तरे तूं वात दुखनी गरव गहिली कामीनी । इम कही राजा हाथ काट्यो तेहना बालक लणी । सातमी मी श्री तले नाख्यो तिसे हाहारव थयो । रोहिणी हसती कहै प्रीतम पूत्र नीचे किम गयो ॥ ११॥ ढाल ॥ हिव राजा रे पूत्र तणे शोके करी। थयो मुरवित रे रोवे अति आंख्यां जरी । पमतो सुतरे सासण देवत कालियो।कंचन मयरे सिंहासण बेसाणियो। (ढाल) वेसाणियो कर जोमी आगे करे नाटक देवता । गोद खिलावे के हसावे पाय पंकज सेवता । ऊपनो पति ने अचंलो देखि ए कारण किसो । जो कोइ ज्ञानी गुरु पधारे पूछिये सांसो इसो ॥ १५ ॥ ढाल ॥ चिंतवतां रे चारित्रिया आया जिसे । राजा पिण रे पुहतो वंदण ने तिसे । सुणि देशना रे पूरे प्रश्न सोहामणो । कहो स्वामी रे पूरब नव बालक तणो ॥ नबालो ॥ बालकतणो नव नूप पूरे कहै इण पर केवली। रोहिणी राणीनो नवांतर अने राजानो वली। श्री सुगुरु पासे पारखे नवे रोहिणी. तप आदयो । तप तणे सगते साधु लगते
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