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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए) ॥३॥ कुमरी रूपे रूवमी ए घर अंगण वैठी। दीनी राजा खेलती ए तिण चिंता पैठी। तीन नुवन विच एहवी ए नहिं दूजी नारी रंजा पलमा गवर गंग इण आगल हारी ॥४॥ पुरुष न दीसे को इसो जिणने परगाउं । आंख्या श्रागल साल वधे तिण चयन न पार्छ । देश देश ना राजवीए ततखिण ते माया । सबल सजाई साथ करी नरपति पिण आया ॥ ५ ॥ वीतशोक राजा तणो ए कुमर सो लागी। कन्या केरी आंखमी ए तिणसेती लागी। ऊना देखे सकल लोक चढिया के पाला । चित्रसेन रे कंगवी कुमरी वरमाला ॥६॥ देव अने देवांगना ए जपे जय जय कार । रलियायत श्रयो देखने ए सारो संसार । कर जोमी कहे लोक वखत कन्यारो जामो । वीतशोकनो कुमर श्रयो सिर ऊपर लामो ॥ ॥ इम विवाह श्रयो नलो ए । दीया दान अपार । घर आया परणी करी ए हरख्यो परिवार । वीतशोक निजपूत्र जणी अपणो पाट दीधो। श्रापण संजम आदरीए जगमें जस लीधो ॥ ७॥ ॥ ढाल २ प्रभु प्रणमुंरे पास जिणेसर थंभणो ए देशी ॥ तिण नगरी रे चित्रसेन राजा थयो । सुख माहीं रे केटलो काल वही गयो । इण अवसर रे श्राउ पूत्र हुवा जला। चढते पखरे चंज जिसी चढती कला ॥ नहालो ॥ चढती कला हिव राय बेगे पास बेगी रोहणी । सातमी नूमी कंत सेती करे क्रीमा अति घणी । आठमो बालक गोद ऊपर रंगसूं राणी लियो । पूत्रने प्रीतम आंख आगल देखतां हरखे हियो ॥ ए॥ ढाल ॥श्क कामणी रे गोख चढी अष्टे पमी। शिर For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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