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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१) मण जग दीपता । ब दो मासी रे जाण । तीन अढाई दो दों कीया। दो दोढ माशी वखाण ॥ व० ॥ ५॥ जज महान शिवगति जाणियें । उत्तम एहना प्रकार । विचमें पारणो स्वामी नहिं कियो । नहिं कीयो चोथो आहार ॥ व० ॥६॥ तिहुँ उपवासे प्रतिमा बारमी । कीधा बारे जी माश । दोयसें बेला जिनजीरा जाणिये । इण गुणतीस विलास ॥ ३० ॥७॥ तीनसे पारणा जिनजीरा जाणिये । तीन गुणतीस पचास । एहमें स्वामी केवल पामिया । पाम्या मुगति आवास ॥व० ॥ ॥ कलश ॥ इम वीर जिनवर सयल सुखकर अतिहि मुक्कर तप करी । संयमसुं पाली कर्म टाली स्वामी शिव रमणी वरी । सेवक पजणे वीरजिनवर चरण वंदित तुमतणा । संसार कूप पर्फत राखो । आपो स्वामी सुख घणा ॥ ए॥ इति उम्मासी तप स्तवनं ॥ ॥अथ रोहिणी तप वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ शाशण देवता सामिणीए मुफ सांनिध कीजे । नुलो अक्षर जगत लणी समझाई दीजे । मोटो तप रोहणी तणो ए जिगरा गुण गाउं । जिम सुख सोहग संपदाए वंछित फल पाउं ॥१॥ दक्षिण जरते अंगदेस ने चंपा नयरी। मघवा राजा राज्य करे तिण जीत्या वयरी । पाटतणी राणी रूवमी ए लखमी इण नामें । थाप पूत्र जाया जिणेए मनमें सुखपामें ॥२॥ रोहणी नामे कन्यकाए सबकुं सुख कारी। आगं पूत्रां ऊपरां ए तिण लागे प्यारी । वाधे चंजतणी कला ए। जिम पख उजवाले । तिम ते कुमरी धाय माय पांचे प्रतिपाले For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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