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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए.) (त्रि०)॥ १० ॥ हिव सह्यो नर जव पुन्यथी । वलि सह्यो श्रीजिनधर्म रे । तत्वनी रुचि थई हे मुके । हिव मिट्यो मन तणो नर्म रे (त्रि० ॥११॥ जव जव एक जिनराजनो । सरण होज्यो सुख कार रे कुगुरु कुदेव कुधर्मनो। में कीधो हिवे परिहार रे (त्रि ) ॥ १२ ॥ दर्शन ज्ञान चारित्र ए । मोदमारग सुविसाल रे । जव जव जे मुझ संपजे । तो फले मंगल मालरे ॥ त्रि० ॥ १३ ॥ श्री जिन शासन तप कह्यो । ते तप सुरतरु कंदरे । धन धन जे नर आदरे । काटे ते करमनो फंदरे ॥ त्रि॥ १४ ॥ कलश ॥ श्म नालि नंदन जगत वंदन सकल जन आनंदनो । में शुण्यो धन दिन थाजनो मुफ मात मरुदेवी नंदनो । संवत सुनेत्राकाश निधि शशि नयर श्री वालूचरे । श्री जिन सौलाग्य सूरिंदके सुपशाय विजय विमलवरे ॥ १५ ॥ इति श्री बारमाशी तप वृद्ध स्तवनम् ॥ ॥ अथ छम्मासी तप स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ गौतम स्वामी रे बुध दो निरमली । आपो करिय पसाय महावीर स्वामी जे जे तप किया । तेहनो कहिसु विचार । वलि वलि वां वीर जी सुहामणा ॥१॥ जावर जंजण सेव्यां सुख करे । गातां नत्र निधि श्राय । बारे वरसां वीरजी तप कियो । दूर करे सहु अपाय ॥ व० ॥२॥ बे कर जोमी एहूं वीनवू । श्रीजिन शासन राय । नाम लियां थी नव निधि संपजे । दरिशण उरित पुलाय ॥ व० ॥ ३ ॥ नव चौमासा जिनजीरा जाणि ये । एक कीयो उम्मास । पांचे कणा वलि जाणिये । बार के को जी माश ॥ व०॥४॥ बहुत्तर माशख For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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