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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७) ॥ अथ द्वितीय दीवालीनो चैत्य वंदन लिख्यते ॥ ॥ सिद्धार्थ कुल दिनमणि । त्रिसलानो जायो । अंतिम चोमासी । प्रत्तु पावा पुरी आयो ॥१॥ कातिवदि अमावसे । सोल पहोर परसिद्ध । देशना दीधी वीर जिन । अनुपम सिव सुख लीच ॥२॥ गौतम स्वामीने ऊपनो। केवल ज्ञान उदार। दीवाली परजातमां । सहु संघने सुखकार ॥३॥ लाइ बीजनो पर्व थयो । सोक निवारण काज । दीवाली आराधतां । सारे वंचित काज ॥ ४ ॥ करि गुणनो करो। चाढो निवेदसार। कृपाचंजसूरि सेवतां । पामे नवनोपार ॥ ५॥ इति श्री दीवाली चैत्य वंदन संपूर्णम् ॥ ॥अथ बीजनी थुइ लिख्यते ॥ ॥ वासपूज जिन अंतर जामी । मन विसरामी स्वामी जी, जविजन । तारण सिव सुख कारण, निजगुणना प्रनु कामी जी बीज दिवस जिनवर शिव सुखकर । चं विमाने पामी जी नगर बुहारिमां मनुहारि सेवो जिन सुख धामी जी ॥१॥ वासु पूज्य पद्म प्रनु राता । चंड सुविधि जिन धवला जी मवि पास दोय नीला जाणो । मुनि सुब्रत नेमी काला जी आठ दिगुण जगनायक लायक । सोवन वरण सुहाया जी वीज दीवश नव नव चनदिक जिन बंदु अहनिशि पाया जी ॥२॥ मुविध धर्म जिनवर प्रकाश्यो । अर्थ अधिक सुखकारि जी। सूत्रे करि गणधर गुरु नाख्यो । नविजनना उपगारि जी। दोय शिदा दोय नयनिदेपा । चननंगी मन आयो जी बीज । आराधि संपदा साधि । परमारथ पहिचाणो जी For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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