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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६) ॥ अथ पर्युषण पर्वनो चैत्य वंदन लिख्यते ॥ ॥श्रीवीरजिनेसर नाखियो पर्वोमां सिरदार । रत्नोमां चिंतामणि । गिरिमां शत्रुजय सार ॥ १॥ लोकिक लोकोत्तर वति । पर्व घणा दिल धार । पजुषण समको नहीं । वोट्या शास्त्र मकार ॥२॥ नंदीसर दीपे जश् । उनव करे सुर राज । तिम श्रावक आराधतां । सारे वांछित काज ॥३॥ आस्रव कषाय निवारिने । सामायक करो शुद्ध । जिन पूजा पर नावना । करिने तरो लव बुख ॥ ४ ॥ कल्पसूत्र सुणो श्क मना । संवचरी पमिक्कमिये कृपाचंजसूरि सेवतां जव मानवि जमिये ॥ ५॥ इति श्री पजुषण पर्वनो चैत्य वंदन संपूर्णम् ॥ ॥ अथ श्री दीपमालिका चैत्य वंदन लिख्यते ॥ ॥जय जय श्री जिनवर्षमान । सोवन समवान । सिंह लंगन सिद्धार्थराय त्रिशला सुत नांन ॥१॥ वरस बहुत्तर आऊ देह कर सत्त प्रमाण । अषन्नादिक सम जास वंस । श्दवाग सम जाण ॥२॥ जत्त संजम लियोए । कुंमग्राम पुर गम । गणधर ग्यारे सहित । पायो शिव पुर स्वाम ॥३॥ चवद सहस मुनि स्वामी सीस । उत्तीस सहस । श्रमणी श्रावक एक लाख । गुण सट्सहस ॥४॥ तीन लाख श्राविका । वली सहस अढार । सुर मातंग सिझायिका । नित सानिधकार ॥ ५॥ एकाकी पावा पुरीए । बनत सुजाण । प्रनु पोहता अमृतपदे । करो संघ कट्याण ॥६॥ इति श्री दीपमालिका चैत्य वंदन ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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