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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७) ॥ ३ ॥ बीज दिवस उपवास करी जे । पमिक्कमणादिक सारो जी। एतप सुरतरु सरिखो जाणो । निरुपम सुख दातारो जी कुमार यद तिम शासन देवी । चंमा सानिध नूरि जी। शुन फल दायक संघने होज्यो । श्रीजिनकृपाचंसूरी जी ॥४॥ इति वीजनी शुश् संपूर्णा ॥ ॥अथ श्री पजुषण पर्वनी थुइ लिख्यते ॥ ॥ वीर जिनेसर जग अलवेसर । राजग्रही समोसरिया जी पर्व पजुषण इण पर नाखे । चनविह संघ परिवरिया जी आषाढ चोमासाश्री पञ्चाश । दिननी संख्या जाणो जी । संव बरी पमिकमणो करिने । आतम निजघर आणो जी॥१॥ दोय राता दोय धोला जिनपति । दोय काला दोय नीलाजी लांउन वरण प्रमाण सुसोनित। सोले जिनवर पीलाजी। सतरे नेदी पूजा करिने । चैत्यपरवामी करी जे जी । परवपजुषण पुरव पुन्ये । पाम्या लाल जाणी जे जी॥२॥ कल्पसूत्र निज घरे पधरावी । रात्रि गो तिहां कीजे जी। वरघोमो सजि संघ मलिने । सद्गुरुने पाणी दीजे जी। नव ग्यारे तेरे वायण । सुणिने उरगति वारो जी। पूजा प्रनावना सद्गुरु नक्ति । करिने जन्म सुधारो जी ॥३॥ साहमीवबल करिये लावे। वारं वार उजमंता जी। केश शीयल तप संयम पाले । नाव अधिक उलसंता जी । आठ दिवस पजुषण सेवो । जिम सेवे सुर इंदा जी। सुयदेवी सुपसाये । नाखे कृपाचं सूरिंदा जी ॥४॥ इति श्री पजुषण पर्वनी शुश् संपूर्ण ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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