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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७ए) ॥ अथ छींक विचार सझाय ॥ ॥ीक शुकननो कहुँ विचार । सुगुरु समीप सुएयो में सार । आगलमां जो गेंकज होय । अशुन्नतणी जाणे जो कोय ॥ १ ॥ पहेला शुकन हुवा शुज घणा । जींक हुवां निरफलते तणां । बींकज दुवां पगी जो जाण । शुकनहुवां ते करो प्रमाण ॥२॥ मावीक होय अर्ध फल कहे । जमणी जीक बूरी सडकहे । पूंचे वीक सुखदायक सही । घणी बींकते निरफल कही ॥३॥ हांसे जय उपाधीयेकरी । हठ घणो मन मांहे धरी । एक बींक ते निरफल जाण । कूतर जींक तो निः खर जाण ॥४॥ मंजार ींक ते मरणज करे । इसी बींक कष्टकारी सरे । वस्तु वेचतां ींकज होय आएयुं करियाणुं मोवू होय ॥ ५ ॥ वस्तु लेतां वीकज होय । बमणो लाल सघलानो जोय । गश् वस्तु जो जोवा जाय । गक होय तो लान न थाय ॥६॥ नवां वस्त्र वली पहेरतां । बींक होये पागल अपवतां । लोजन होम पूजानुं काम । मंगलिक धर्म सुगम ॥ ७ ॥ काम एटलां कीधानी अंत । वली क्रिया करावेखंत । रति स्नान करीने रहे । नींक होयतो पुत्रज लहे ॥ ७ ॥ ऋतुवंतीने दीधे दान । पठी होवे पुत्र निदान । वैरी जीती जागुं जोय । जीके वैरी सबलो होय ॥ए । रोगी काज वैद्य तेमवा। जातां वीके जोनव नवा ते रोगीने मृत्यु जाणीये । काम विना वैद्य नाणीये ॥ १० ॥ वैद्य रोगीने घरे आवतां । बीक होये औषध आपतां । रोगी तणोरोगते समे । आहार लेते जमवु गमे ॥११॥ व्यापारे लिधे व्यापार । क होय तो वृद्धि अपार । वेखं For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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