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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Anh (२७) सुर थायजी ॥ तो सुखमालिका बछे अंगें। किम दूजे देवलोक कहायजी ॥ स्या० ॥१५॥ सूत्र टीका नियुक्ति वखाणो। चूर्णि नाष्य ए मेलो पंचजी ॥ पंच कहे तोतेमत साचो । तिण अर्थे मकरो खल खंचजी ॥ स्या० ॥१६॥ जीवा निगमें असंघयणी । नाख्या नारकी श्री जगवंतजी ॥ जंगणीशमेश्री उत्तराध्ययनें । मांस पिंक बोट्या सिद्धांतजी ॥ स्या ॥१७॥ विण व्याकरणें अर्थ करेजे।अर्थ नहिं पण अनरथ जाणजी॥ लांजे नावें नदी केम तरिये । दशमे अंगें कह्यो जिन नाणजी स्या० ॥ १०॥ श्रीजिन प्रतिमानुं वैयावच्च । करे कर्म निर्जरा काजेंजी ॥ दशमें अंगें साधु जणी ए। श्रर्थ विचार कह्या जिनराजेंजी ॥ स्या० ॥ १७ ॥ हेय गेय उपादेय वखाण्यो । तिम उत्सर्ग अने अपवादजी ॥ विधि चरितानु वाद नयसंस्थित । निश्चय नय व्यवहार मर्जादजी ॥ स्याम् ॥ २० ॥ अनेकांत नयवादी जिनवर । बागम मांहिं वद्या दश बोलजी॥ कहे श्रीसार समजके परिखो । श्रीसिम्घांत रतन बहु मोलजी ॥ स्या० ॥ २१॥ इति स्याद्वादनी सहाय संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्रीहंसभुवनसूरिकृत निश्चय व्यवहारनी सझाय लिख्यते ॥ ॥ देशी एकवीशानी ।। ढाल ॥ श्रीजिनवररे । देशना दिये सोहामणी ॥ नवियणनेरे । नवसायर ऊतारणी ॥ तेह जिनवररे । विनय लावे हित धरी ॥ निश्चय नयरे व्यवहारथी अधिकोगणी ॥ त्रुटक ॥ व्यवहारथी नय अधिको जाणो। हवे आणो मन बली ॥ गृहवेष हुँते कोय न वंदे । जो थयो For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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