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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२७६) कह्यो जिनरायजी ॥ स्यात् ॥४॥ पंचम अंगे न करे श्रावक। त्रिविध पन्नरह कर्मादानजी ॥ हल निवाहतणा पण दीसे । सप्तम अंगे कियां परमाणजी ॥ स्याम् ॥ ५ ॥ हिंसा न करे त्रिविधं मुनिवर । पंचमे अंगें जुवो धीरजी ॥ जिनवर तेजो लेश्या उपरि । शीत लेश्या मूंकी वीरजी ॥ स्या० ॥६॥ महावेदना हाथ लगायां । वनस्पतिने थाये अंगजी ॥ पमतो मुनिवर तेहज पकने। एह अर्थ ने आचारांगजी ॥ स्या॥७॥ जत्तराध्ययने लाख्यो मुनिवर । समय मात्र न करे प्रमादजी ।। दशवैकालिक त्रीजी पोरिसी। निंदतणी कीधी मरजादजी ॥ स्या ॥ ॥ अंध जणी पण अंध न कहेवो । दशवैकालिक ए विधि वादजी ॥ ज्ञाता अंगें जतियै नाख्या । नागश्रीना अवरणवादजी ॥ स्या० ॥ए ॥ सूत्रे देव अविरति बोल्या । हवे पांचमे चाणे मन रंगजी॥ब्रह्म चरिज तप अति उत्कृष्टो। देव नणी गणांगजी ॥ स्या० ॥ १० ॥ सूत्र नवि घटे प्रकरण विघटे । प्रश्न पूरी में तेहने एहजी ॥ षन बाहुवल शिवपुर पहोता । एकण दिन नांजो संदेहजी ॥ स्या० ॥ ११॥ सात जणाशुं मसी दीक्षा । सातमे गणे श्रीगणांगजी॥ बछे अंगें सात सयाशुं । कोण खोटो कोण साचो अंगजी ॥ स्या० ॥१२॥ नारी सहस बत्तीसें ज्ञाता । सूयगमांग सोल हजारजी ॥ किसनतणी अंतेजरी नाखी । किम मेलीजें एह प्रकारजी ॥ स्या० ॥१३॥ कुलगर पनरे जंबुपन्नत्ति।समवायांगे कुलगर सातजी॥ हरि बारमा जिन आवमे अंगें। तेरमे चोथे अंग कहातजी ॥ स्या० ॥१४॥ चारित्र विराधी जुवो पांचमे अंगें। जवन पतिमाहे For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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