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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०५) सामायक पोसा किया। लिया साधुना वेस ॥ पण संवेग धयो नहिं । कहि किम तुं करेश ॥ पा० ॥ ३० ॥ सूत्र प्रकरण सम. जतां । कह्यां विपरीत कोय ॥ जण जण मतने जुजूया। सुणतां नम होय ॥ पा० ॥ ३१ ॥ वचन तिके वीतरागना । तेतो सहि साच ॥ जगवति अंगे जोज्यो । वीरनी ए वाच ।। पा० ॥ ३२॥ करमादान पन्नरे कखां । वली पाप अढार ॥ खिण खिण ते सहु खामज्यो । संन्नारी संचार ॥ पा० ॥ ३३ ॥ ण नव परनव एहवां । कीधां होये पाप ॥ नाम कहीने खामजो । करजो पश्चाताप ॥ पा० ॥ ३५ ॥ खरच कांई लागशे नहीं । देहने नहीं सुख ॥ पण मन वैरागे आणज्यो । सहि पामशो सुख ॥ पा० ॥ ३५ ॥ संवत सोल अणुं ए। अहमदपुर मांहिं। समयसुंदर कहे में करी। आलोयण बनिसी जन्हांहिं ॥ पा० ॥ ३६॥ इति आलोयण बत्रीसी संपूर्णम् ॥ ॥अथ पंडित श्रीसारजीकृतस्याद्वादनी सझाय लिख्यते॥ - ॥आराधो अरनाथ अहोनिश ॥ एदेशी ॥ स्याद्वाद मत श्रीजिनवरनो । ते केम कहिये एकांतजी ॥ मत एकांत कहे मिथ्यात्वी। साखी सकल सिहांतजी ॥ स्या० ॥ १॥ त्रियारूप तिहां न रहे मुनिवर॥शोलमे उत्तराध्ययनने विचारजी ।। साधु साधवी वसे एकगं । श्रीगणांगे पांच प्रकारजी ॥ स्या० ॥२॥ जीव असंख्य कह्या जल टबके । पन्नवणा सूत्र जिनराजजी ॥ कल्पसूत्र मांहे नित्य नदीने । लंघे मुनिवर वहोरण काजजी ॥ स्या० ॥३॥ श्रीगणांगे चोथे गणे । मांस आहारी नरकें जायजी ॥ मद्य मांस मधु पण श्राचरणो । श्राचारांगे For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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