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(२४) उत्तराध्ययन प्रकाश ॥ पा० ॥ १६ ॥ घाणी घंटी ऊखली। जीव जंतु पीलेश ॥ खमीतुं नहि तर नरकमें । घाणि मांहे पिलेश ॥पा० ॥१७॥ गनां अकारीज करी परे । गर्ने नांख्यां पाम ॥ परमाधामि ते तुने । नित्य नाखशे फाम ॥ १७ ॥ गोधानां नाक विधियां ॥ खसी कीधा बलद ॥ श्रारंजी उगमिया । राति जंचे शब्द ॥पा० ॥१॥ वाला वाट्या टांकतां । माकण खाटला कूट ॥ रेच लेइ क्रम पामिया । गलणो गयो बूट ॥ २० ॥ पा ॥ राग ष वाम्या नहिं । ज्यां जीवो त्या सीम॥अनंतानु बंधी ते श्रयी। कहे करीश केम ॥पा० ॥१॥ तम तमते नांख्यां तावमे । सट्यांधान जूवार ॥ तम फीने जीवते मूआं । दया नहिं लगार ॥ पा० ॥२२॥ अणगल पाणि खूगमा । धोयां नदिय तलाव ॥ जीव संहार कीधां घणा ॥ साबु फरस प्रत्नाव ॥ पा० ॥ २३ ॥ वैरी विष देश मारिया । गले फांसी दीध ॥ ते तुजने पण मारशे । मूकशे वेरलीध ॥ पा० ॥ २४ ॥ कोऊ अंगिठी ते करी । ताप्यो सघमी कुंम ॥ राते दीवो राखियो । पाप नस्यो पिंक ॥ पा ॥ २५॥ माथी विगेड्यां वामां । नीरि नहिं चार ॥ जनाले तरशे मूआं । किधि नहिंज सार ॥ पाम् ॥ २६ ॥ मा बापने मान्या नहिं । सव शुं संतोष ॥ धरमनो उपगार नवि धस्यो। सिंगल किम होय ॥ पा० ॥ २७ ॥ बांधो टुंटो पांगुलो। कांणो कोमीयो जार बोर ॥ मरम फिटि जानि बोलवू । कह्यां वचन कोर ॥ पा ॥२॥ मद्यने मांस अलक्षजे । खाधा इंशे दुश॥मिगमि मुक्कम देश्ने । प लेजे व्रतसुंस ॥पा०॥श्ए॥
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