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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६२ ) ॥ अथ नवपद् वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ नत्र ॥ सुरमणी सम सहमत्रमां । नवपद अभिरामीरे वो ॥ अहो नव० । करुणा सागर गुण निधी । जग अंतर जामीरे लो || हो जग || १ | त्रिभुवन जन पूजित सदा । लोका लोक प्रकासीरे लो || अहो लोका० । एहवा श्री अरिहंतजी । नमुं चित्त उल्लासीरे लो || अहो नमुं० ॥ २ ॥ अष्टकरम दल क्ष्य करी । यया सिद्ध सरूपी रे लो। अहो श्रया० । सिद्ध नमो जवि जावयी । जे अगम अरूपीरे लो ॥ श्रहो जे० ॥ ३ ॥ गुण बत्तीसे सोजता | सुंदर सुख कारीरे वो ॥ अहो सु० ॥ आचारज तीजे पदे व अविकारीरे लो ॥ श्रहो वं० ॥ ४ ॥ आगम धारी उपशमी । तप दुविध धीरे वो ॥ श्रहोत० ॥ चोथे पद पाठक नमो | संवेग समाधीरे लो ॥ अहो सं० ॥ ५ ॥ पंचा चार पालणपरा पंचाश्रवणत्यागीरे तो ॥ अहो पं० ॥ गुण रागी मुनि पांच में । प्रमुं वक जागीरे लो || अहो प्र० ॥ ६ ॥ निजपर गुपने श्रोलखे । श्रुत श्रद्धा श्रावेरे लो ॥ अहो श्रु० ॥ गुण दरशण नमो । श्रातम शुभ जावेरे लो ।। श्रहो या ॥ ७ ॥ ज्ञान नमो गुण सातमें जे पंच प्रकारे लो ॥ यहो जे० स्वपर प्रकाशक दिनमणि । जह अज्ञान निवारे तो अहो जे० । ॥ ८ ॥ में चारित्र पद नमो | परजाव निवारी रेलो || हो पत्यादिक दस धर्मनो । जेह वे अधिकारे लो || अहो जे० ॥ ए ॥ नवमें वलि तप पद नमो । बाह्याभ्यंतर देरे लो || अहो बा० ॥ बांध्याकाल अनंतना । जे कर्म बे देरे लो || अहो जे० ॥ १० ॥ ए नव पद बहुमान श्री । ध्यावे शुभ जावेरे लो || अहो ध्या० ॥ नृप श्रीपाल ती परे । मन For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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