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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६३) वंचित पावरे लो॥ अहो म ॥ ११ ॥ श्रासू चैत्रक मासमां। नव अविल करियरे लो॥ अहो नव० ॥ नव अोली विधि युत करी। शिव कमलावरि येरे लो ॥ अहो शि ॥ १२ ॥ सिद्धचक्रनी बहु परे । वर महिमाकी जेरे लो ॥ अहो व ॥ श्रीजिनलान कहे सदा। अनुपम जशली जेरे लो॥ अहो अप ॥ १३ ॥ इति श्रीनवपदजीका वृष्य स्तवनं ।। ॥ अथ चैत्री पूनम वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ ढाल ॥ पय प्रणमीरे जिन वरना सुप साउले । पुंकर गिररे गाइस हुँ सुन्न जाउले । मति सुर गिररे सहस जीन जो मुख हुवे । किमते नररे विमला चलना गुण स्तवे । नहालो । किमस्तवे गुण गण एह । गिरिना जिहां मुनि सीधा बहु । गिर रायना गुण नापिये। तिरपंच नारक तणी गतिना दुःख दूरे राखिये ॥ १॥ चाल । जिन राजारे पहिलो आदि जिने सरू । तसु नंदनरे चक्रवर्ति नरते सरू । तसु अंगजरे पुंमरीक गुण गण निलो।शम दम रसरे विनय विवेक गुणे नलो । जलालो। गुण नलो अनुक्रम आदि जिनवर पास संयम सिवपुरी। पुंभरीक गणधर प्रथम विहरे सुमति गुपले संचरी । पण कोमि साथे विमल गिरवर मुगति पदवी पाव ए । सुदि चैत्र पूनिम तेण ए गिरि घुमरीक कहाव ए॥२॥ चाल ॥ हिव चैत्रीरे पूनिम पर्व सुहामणो । सेजुजेरे आराध्यां फल हुवे घणो। मन सुधेरे आपापे थानकरही। आराध्यारे यात्र पुन्य पामे सही। नहालो ते पुन्य पामें दान तप जप धर्म ध्यान मने धरे । बहु लाव जत्ने त्रिविध पूजा आदि जिनवरनी करे । जावना नावे For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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