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(६५) तेण दिवसे पंच कोमि गुणो फले । अनुक्रमे ते नर भुगति पामी सिद्धि सुंदरीने मिले ॥३॥ चाल ॥ दश वीशारे तीश चालीश पूजा कही । पन्नासारे निरती सरदही । चनथ उच्रे अध्म दशम वालसे। पूजा फलरे अनुक्रम ए मुफ मन वसें। नहालो। मनवसे पूज कपूर धूवे मास खमाण फले वली । सामन्न धूवे पक्खनो फल जे करे मननीरली। हिव पूजनी विधि जेम गुरु मुख सुणी अडे परंपरा । ते मोहमाया कपट बंमी सुणो नवियण सादरा ॥४॥ ढाल ।। तंमुल राशि विमल गिरयापी। तसु ऊपरि पट्टादिक आपी। प्रतिमा आदि जिणेसर केरी। पुंमरीकनी थापी निवेरी ॥ ५॥ सेनंज गिरिने मन चिंतीजे । करमतणा मल दूर करीजे । मोती तंबुल करीय वधागो । तीन प्रदक्षण पूज रचावो ॥ ६॥ मंगलीक पहिला तिहां आठ । करम बंध दूरे करि आउ । प्रतिमा मूल सनात्र करेवा । जिनवरना गुण हीयमे धरे वा ॥ ७॥ जना घई नवकार गुणंता। दश दश जेती तिलक करंता । माला पुष्प पुंगी फल ढोवो। मेरु जरण वर धूप उखेवो । ढाल ॥ शक स्तव पांचे देव वांदे। जघन्यना वंदण पाप दे । दशे नमस्कार करत जेती । राखी करी दृष्टि जिनेंद्र सेती ॥ ए॥ श्राराधिवाकीजे काउसग्ग । जिणे कीये नाजे कर्मवग्ग । लोगस्स उजो य दसे वखाएं। वेला प्रमाणे अहि एग आणुं ॥ १० ॥ईणें प्रकारे धुर पूज एह । इसी परे बीजी च्यार तेह । दशांतणी वृद्धि तिहां गिणी जे । एक चित्त सूधे सुन पुन्य कीजे ॥ ११ ॥ धजा तणो रोप तिहां करीजे । एकेक पुरे अथवा गिणी जे । महुत्तरे आरति
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