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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३५) ॥ * ॥ चवदगुणठाणा स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ थंभण पुर श्रीपास जिणंदो ॥ ए चाल । ॥ सुमति जिणंद सुमति दातार । वं मन सुधवारं वार । आणी नाव अपार । चवदे गुणस्थानक सुविचार । कहि स्यु सूत्र अरथ मन धार । पामें जिम लवपार ॥१॥ प्रथम मिथ्यात कह्यो गुण गणो । बीजो सास्वादन मन आयो । तीजो मिश्र वखाणुं । चोथो अविरति नाम कहाणो । देशविरति पंचम परमाणो । उसो प्रमत्त पिठाणुं ॥२॥ अपरमत्त सत्तम स सही जे । अज्म अपूरब करण कही जे । अनिवृत्ति नाम नवम्म । सूखम लोन दसम सुविचार । उपशांत मोह नाम श्यार । खीणमोह वारम्म ॥३॥ तेरम सयोगी गुण धाम । चउदम थयो अयोगी नाम । वरणुं प्रथम विचार । कुगुरु कुदेव कुधर्म वखाणे । एह खदण मिथ्या गुण गणें । तेहनां पंच प्रकार ॥४॥ ॥ ढाल २॥ सफल संसारनी चाल ॥ ॥ जेह एकांत नयपद थापी रहै प्रथम एकांत मिथ्या मति ते कहे । ग्रंथ उत्थापि थापे कुमति आपण। । कहे विपरीत मिथ्यामती ते जणी ॥ ५ ॥ जैन शिव देव गुरु सहु नमें सारिखा । तृतीय ते विनय मिथ्यामति पारिखा । सूत्र नवि सरदहे रहे विकलप घणे । संसयी नाम मिथ्यात चोथो जणें ॥ ६॥ समझ नहीं काई निज धंध रातो रहे । एह अज्ञान मिथ्यात पंचम कहै । एह अनादि अनंत अजव्यनें । करिय अनादि थिति अंत सुन्नव्यनें ॥ ७ ॥ जेम नर खीर For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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