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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३७) दस गुणित करीजे तेह । पण सहस उसे वलि तीस अधिक ते जाण । ते रागे दोसे मुगुणा करी वखाण ॥६॥ दुइ सहस ग्यारह उसय सार प्रमाण । ए प्रवचन वाणी जाणी हित जर आण । मनवच काया करि त्रिगुणा करि ते अंक । तेतीस सहस सत सात असी निःसंक ॥ ७ ॥ वलि करण करावण अनुमति त्रिगुणा किन्छ । इक लक्ख सहस ग तिसय चालीस प्रसिद्ध । अतीत अनागत वर्तमान वलि काल । जे अश्य विराधना तिणि त्रिगुण संजाल ॥ ॥ तीन लाख सहस च्यार बीस अधिक ते पाय । अरिहंत प्रमुख बह साखे उ गुणा नाय । श्म लाख अढारह वलि सहस चवीस । इकसो वीसोत्तर हुइ संख्या निसदीस ॥ ए॥ ॥ ढाल ४॥ चोपईनी॥ ॥ण पणि मिठामि उक्कम देई । नविक तस्या जवजल निधि केई । तरे अ वलि आगल तरसी। निरमल केवल लखमी वरसी ॥ १० ॥ रिया वही धरम गंगाजल । स्नान करि श्रातम करे निरमल । से मुख जाये वीरजिनेसर । सूत्र करि गूंथे ते श्रुतधर ॥ ११ ॥ इम पमिक्कमी मुनिवर श्मतो । वीर सीस केवल पदपत्तो। त्रिकरण सुध तसु पय प्रणमीजे । मानव जनम सफल श्म कीजे ॥ १२ ॥ कलश ॥ इम वीर जिणवर झान दियर सयल लोय सुहंकरो । तिय लोय सामी सिद्धि गामी सुध धरम धुरंधरो । उवज्काय लक्ष्मी कीर्ति सीसे जैन वाणी मनधरी गणि ललिवल स्तवन नण इम संथुण्यो जावे करी ॥ १३॥ इति श्रीहरियावही स्तवनं संपूर्ण । For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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