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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३१६) प्रति दिने न से० ॥ ३३ ॥ इति नव पद वृक्ष स्तवनम् ॥ ॥ महावीर स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ कर्म तणी कथनीरे कीहां जश्ने कहुं ॥ ए देशी ॥ वीर जिनेसर अलवेसर प्रनु सजिलो सुनिजर धरि सेवकनी ए अरदासजो, वालेसर विन केहने करीये वीनती, श्म जापीने आव्यो तुमारी पासजो ॥ वी० ॥१॥ काल अनादि रफड्यो हुँ संसारमा जवानव जमतां दुःख सह्या अपारजो। वीतराग तमे तारक जाणों तातजी, तोपण वीतक वात कडं निरधारजो ॥ वी० ॥२॥ काल अनंत रहियो सूक्ष्म निगोदमां, व्यवहारेतर राशी दोय कहंत जो श्वासोश्वासमां अधिका सतरे नवकर्या श्म करते नवि पाम्यो जवनों अंत जो ॥ वी० ॥३॥ काल लब्धि पामीने परित्तपणों लह्यो, पृथिव्यादिक व्यवहारमा श्राव्यो तेजो। कर्म उदयथी फरि पमियो निगोदमां, पुद्गल परियट्ट असंख्य रह्यो उहणजो ॥ वी० ॥ ४ ॥ व्यवहारराशिकहवाणों हुं तिहां एजाणूं तुझ आगमयी जगतात जो, एकेजियमां वसतां काल घणो गयो तेहनी केटली कहूं तुम पागल वात जो ॥ वी० ॥ ५ ॥ विकलेंजियनां नव संख्याता मैं कीया सुःख तणो नही आवे कहता पारजो, पंचेंजिय तिर्यंच पणों लहिने प्रनो, जल थल खचरना नव को मुखकारजो ॥ वी० ॥६॥ शीत ताप जय नूख तृषा सही घणी कूर कम करी उपनो नरक मकार जो, वेदन नेदन तामन तर्जनादिक सह्या पर्मा धादि कृत For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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