________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(३१७) कष्ट असारजो ॥ वी० ॥७॥ नरक थकी निकलीने तीर्यच वलि थयो, अकाम निर्जरा करतां वहुली वारजो, देव गतिमां उपजी सुख लंपट थयो, तेथी सुकृत कीनों नहीं लगारजो ॥ वी० ॥ ॥ कर्म संयोगे एकेंजियां उपनो, श्म नव चमण करंता अनंता वेसजो, प्लजतां क्रमथी मनुष्यपणो मै पामियों त्यांपण न बह्यो धर्म तणों लवलेशजो ॥ वी ॥ ए॥श्म जव नाटक करतां काल बढ़ गयो, पुन्य संयोगे पाम्यो प्रनु दीदारजो, स्वामी शाशन लगो मुझने मीठमो हिव प्रनु करुणा करी मुजकरो निस्तारजो ॥ वी० ॥ १० ॥ तुम सरिखा साहिबनी सेवामै लही, हिव प्रनु मुजनें जाणों सेवक खासजो तुम गुण जाणुं एटली सुनिजर कीजीये कृपाचं प्रनु पूरो मनमेनी आसजो ॥ वी० ॥ ११॥ गुर्जर देशे पानसरे प्रनु जेटिया वरष उगणीसे नगणोत्तरे शुज दीसजो, मौन ग्यारस मनमोहन प्रनुजी मिट्या, श्रानंद दायक जयकारी जगदीश जो ॥ वी० ॥ १२ ॥ इति पदम् ॥
॥ अथ पंचमिका बुद्ध स्तवन लिख्यते ॥ ॥ उहा ॥ सिझारथ कुल दिनमणि । त्रिसला देवि सुजात॥ वर्षमान जिनचंदकुं । नमन करि परमात ॥ १॥ गुरु दरियो नरियो गुणें । तरियो किण विधि जाय ॥ वलिहारि गुरु देवनी। मो मन रह्यो लोनाय ॥२॥ जिनवाणी पीयूष रस पान करो निशिदीश ॥ पांमो नाण सुस्करु । नाखै जगनाईश ॥३॥ ढाल ॥ कपूर हुवे अति ऊजलोजी ॥ ए देशी ॥ ज्ञान आरोधो जविजनाजी । श्राणि नक्ति अपार पांच ज्ञान प्रगटायवाजी ॥
For Private And Personal Use Only