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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३१७) पंचमी सेवो उदाररे प्राणि जिनवाणि मन श्राण अनुपम सुखनी खाणरे ॥ प्रा० ॥ जिन ॥ १॥ नाण बमो संसारमाजी ज्ञानयी मुगति श्राय ज्ञानदीपक समजाणियेजी सर्व लोक प्रगटायरे ॥ प्रा० ॥ जिन ॥२॥दिव्य ज्ञान लोचन कह्योजी लोकालोक देखाय ज्ञान विनापशुसारिखाजी जाणे नही नर कायरे ॥ प्रा० ॥ जि० ॥३॥ ज्ञान आराधक सर्वथीजी॥ किरिया देश विचार लगवति सूत्रमा लाखियो जी आपमें शतक मकाररे ॥ प्रा० ॥ जि ॥४॥ अज्ञानी क्रोम वरसमांजी तप करि निर्जरा जेह, ज्ञानिस्वासोस्वासमांजी कर्मक्ष्यकरतेहरे ॥ प्रा० ॥ जि० ॥ ५॥ ज्ञान तणो अधिकार ने जी नंदिसूत्र मझार क्रिया सहित ज्ञान सुंदरुंजी मोद तणो दाताररे ॥ प्रा० ॥ जि० ॥ ६॥ जिम सोनो सुगंधीजी रत्न मुंदीयेजाण, संख सोहे दूधे नस्यो जी तिम करिया युत नाणरे ॥ प्रा० ॥ जि० ॥ ७॥ महानिसीथ माहै कह्यो जी पंचमी विधि विस्तार वीर जिनंदै दाखियोजी सूत्रे श्रीगण धाररे ॥ प्रा० ॥ जि० ॥ ॥ ( ढाल बीजी) सखि आज अनोपम दीवालि ॥ ए देशी ॥झान आराधी संपदा साधी निजगुणनो ए सुखकारी सखि नाण सुहंकार गुणकारी ॥ ए॥ पंचमी तप विधियुत नवि करकै नाणने सेवो इकतारी ॥ सप ॥ ना॥१॥मगसर माह फागुण वैसाखे जेठ आषाढने दिल धारी ॥ स ॥ ना० ॥ ११ ॥ ए षट् मासे विधियुत लीजै शुन दिन गुरुमुखश्री सारी ॥ स० ॥ ना ॥१२॥ देव वंदन देहरासर करिने पोथी पूजी सुविचारी ॥ सपना॥१३॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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