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(३१५) गीतारथ गुरु चरण नमीने नंदि विधि करि हितकारी ॥ स० ॥ना ॥ १४ ॥ गुरुमुख उपवास नांवे करीने पमिकमि टालो अतिचारि ॥ स० ॥ नाम् ॥ १५॥ शास्त्र जणो श्रीसदगुरु पासै पंचमी दिन श्रारंज टारी॥ स० ॥ ना० ॥ १६ ॥ पांच वरस पांच मासने उत्कृष्ट जावजीव करे इकतारी ॥ स० ॥ ना० ॥ १७॥ पांच मास लघु पंचमी कीजै स्तवन शुश् कहे ब्रह्मचारी ॥ स ॥ ना ॥ १७ ॥ (ढाल ३ जी) पहलो अंग सुहामणोरे ॥ ए देशी ॥ ज्ञान नमो गुण नवि जनारे नाण प्रकाशक जाणरे सुगुण नर पंचमी तप विधियुत करीरे लाल पामो अविचल नाणरे ॥ सु०॥ ज्ञा० ॥ १९ ॥ दोय नेदे नाण जाणीयेरे निश्चयने व्यवहाररे ॥ सु० ॥ त्रण अनुयोग व्यववहारमारे ॥ ला० ॥ भव्य निश्चय सुखकाररे ॥ सु०॥ झा० ॥ २० ॥ पांच ज्ञानना नेदरे इकावन सुविशेषरे ॥ सु० ॥ जिन्न जिन्न ते दाखव्यारे ॥ ला ॥ तेह कहुं लवलेशरे ॥ सुप ॥ज्ञा०॥१॥ मति झानना जाणियेरे अगवीश प्रकाररे ॥सु ॥ श्रुतना चवदेने वाशरे अश्रादिक सुविचाररे ॥ सु० ॥झा ॥२२॥ अवधि व असंख नेदरे मनपर्वय उग जाणरे ॥ सु० ॥ लोकालोक प्रकाशकोरे । ला० ॥ केवल मनमे आणरे ॥ सु० ॥ ज्ञा० ॥ २३ ॥ तीन ज्ञान प्रत्यदरे देश सर्वसुजगीशरे ॥ सु०॥ अवधि मनपर्य बलिरे ॥ ला० ॥ देश प्रत्यक्ष कह्या ईशरे ॥ सु ॥ज्ञा ॥ २४ ॥ केवल सर्व प्रत्यदनेरे ध्यावो परम पवित्ररे सु० ॥ दोय परोद पिगणियेरे ॥ ला ॥ मतिश्रुत नेद विचित्ररे ॥ सु० ॥ झा० ॥२५॥
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