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(३०) च्यार ज्ञान उप्पा कह्यारे श्रुत अनुयोग विचाररे सु० ॥ उद्दे. शादिक जाणियेरे अनुयोग घार मकाररे ॥ सु० ॥ झा॥२६॥ उपगारि श्रुत नाणधीरे जाणे आज त्रिकालरे ॥ सु० ॥ पर बोधक श्रुत सैवियरे सद्गुरु चरण निहालरे ॥सु०॥ज्ञा ॥२७॥ वायण प्रचना परावर्तनारे अनुपेहा दिल धाररे ॥ सु०॥ धर्मकथा कही कीजीयेरे ॥ ला ॥ सहाय पांच प्रकाररे ॥ सु॥झा ॥ २८ ॥ अंग श्यार बार उपांग रे दश पयन्ना नंदीशरे ॥ सु० ॥ उद चल मूल दिल धरोरे ॥ला ॥ अनुयोगधार पैतालीशरे ॥ सु० ॥ ज्ञा० ॥ ए॥ ॥ ढाल चोथी ॥ गरवेनी स्वामी शरीर सोसाइ गयो॥ ए देशी ॥ ज्ञान नजो जवि प्राणीया वंछितफल दातार ज्ञानी दीपक सम कह्यो सूत्रे श्रीगणधार ॥ ज्ञा० ॥ ३० ॥ सुरतरु सुरमणि सुर गवि कल्पलता अनुकार एहथी अधिको जाणिये महिमा अगम अपार ॥ ज्ञा० ॥ ३१ ॥ काल अनादि लगे जम्यो मिथ्या मति नवमांय सम्यग् ज्ञान प्रगटे यदा नवमें न रहाय ॥ ज्ञा० ॥ ३२ ॥ समकित गुण प्रगटायवा त्रणकरण करे जीव समकित ज्ञान एकणसमे लहै सुरक अतीव ॥ झा० ॥ ३३ ॥ देश विरति पामें तदा पट्य असंख्य जाग जाय सर्व विरति लही चरण धर ज्ञानादिक चित लाय ॥हा॥३॥ घाति करमनो दय करी केवलज्ञान प्रकाश लव्य कमल प्रति बोधता विचरे जगवंत खास ॥ ज्ञा० ॥ ३५ ॥ ज्ञान चरण दोय नेद मुक्ति कारण जाण तप संजम बिहुँ दाखिया नविए मनमां आण ॥ ज्ञा० ॥३६॥ पांचमि आराधन करि ज्ञान
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