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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६५) नको लहे गुण गिर नवकार ॥ १५॥ अमसंपय नवपय सहित इगस लहु अक्खर । गुरु अक्खर सत्तेव इह जाणो परमाक्खर गुरु जिणवबहसूरि नणे सिव सुरकह कारण नरय तिरय गइ रोगसोग बहु पुरक निवारण । जल थल महियल वन गहण स्मरण हुवे इक चित्त पंचपरमेष्ठि मंत्र तणी सेवा दज्यो नित्त ॥ १३ ॥ इति पंच परमेष्ठी महिमा स्तवनं संपूर्णम् ॥अथ सत्तर सो जिनको स्तवन ।। ॥हा॥ स्वस्ति श्री दायक सदा त्रैसलेय जिनचंद ॥ तत्पद नामी कंधरा कारण सिव सुख कंद ॥ १॥ वाच्यका सारदा तणो नर धरि समरण शक्ति । सप्तत्युत्तर सत जिन तणी रच स्युं नुति सुचि नक्ति ॥ ५ ॥ जे घीप समस्तनै मध्यमेरू कनकाल । पूर्वापर जवि तेहने विजय नामको लान ॥ ३ ॥ मूल विजय वसु प्रति दिशा कथनामें युगतीस । शीतोदा तरणी तणो कारण विश्वावीस ॥४॥ अंक धातकी दूसरो वीप मनोहर तेह । कंचन गिरि युग ने तिहां मन धारो धर नेह ॥ ५॥ त्रयतम पुष्कर जांणिये दीप सकल गुण खांण । अर्ध नाग जसु उत्तमें गिरि युग जलद समांन ॥ ६॥ लो जवि संख्या विजयनी प्रति मेरौ बत्तीस । धारो गणित अनुक्रमें षष्टयुत्तर शतहींस ॥ ७॥ एह आढाइ छीपनीविजयतणो परिमाण । काल चतुर्थ तिहां सदा नाष्यो श्रीजिनजाण ॥ ७॥ जिण तीर्थकर वारके विचर्या जे जिनराय । तेहूं प्रति विजये नएं आगमसुं चित लाय ॥ ए॥ ( ढाल पारणेकी)॥ तिण काले ने तिण समेजी तीर्थकर महाराज । For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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