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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६६) अजित जिनेसर राज ताजी तारण तरण जिहाज । नविक जन धारज्यो धर्म सनेह ॥ टेर ॥ १॥ अतिशय चौतीस संजुआजी वांणी गुण पैंतीस ॥ लोकालोक प्रकाशताजी प्रणमत नर सुर ईस ॥ ज० ॥२॥ एहवा श्रीजिन वारके जी एकसो साठ जिनंद । विचर्या महियल बोधताजी विजय मकार सनंद ॥ ज० ॥ ३॥ पंच पंच नरतैरवतेजी दशमित श्रीजिनराय ॥ विचरै जगजन तारताजी समर्या संपति थाय ॥ ज० ॥५॥ए सत्तर सो जिनवरुजी अतुल सकल गुण खांण । श्यामवरण सोले कह्याजी अकल कला द्युतिवांन ॥ज० ॥ ५॥ रक्ताकृति त्रिंशत कह्याजी नीलवरण वसु तीस रवि जिम कलहल लाधरुजी कनकवरण बत्तीस ॥ ज० ॥६॥ रजत मुक्त वय जल कणाजी समसित विमल प्रकाश । नविक चकोर प्रमोदताजी शशि जिम जिन पच्चास ॥ ज० ॥७॥ प्रति जिन व्रत उपवासथीजी वीस प्रमित जप माल । त्यक्त कषाय शुजातमांजी धरिये लाव विशाल ॥ ज० ॥ ॥श्म ए तप पूरण हुयांजी उजमणे जिन शक्ति । कीजे श्रीजिन शाशनेजी संघ सहूनी नक्ति ॥ ज० ॥ ए ॥ ए तपविधि नवि जे करेजी प्रेमसहित जिन धर्म । साधन गुण अनुमोदताजी ते लहे दिव शिव शर्म ॥नम् ॥ १० ॥ कलश ॥ संवत मुनिसर लोक नारद चंड ज्येष्ट (१९३७) पमुरए वदि सप्तमी रवि दिने हितवसन कथन धर जूरए । गुरु खरतरांबर तरणि सनिल जैनचं सनुरए एतवन कीधोजीमगंजे श्रमण चंदक पूरए ॥ ११ ॥ इति श्री सत्तरसो जिन स्तवनं संपूर्णम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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