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(२६७) ॥ अथ कम्म पयडी स्तवन ॥ ॥ दुहा ॥ सेना माता जितारि सुत श्रीसंनव जिनराज ॥ मूल करम उत्तर पगई हणी चढे सिवपाज ॥ १॥ अष्ट करमकुं क्ष्य करी गुण अष्टक निष्पन्न ॥ सादि अनंत स्थिति सही चिदानंद विदघन्न ॥॥ तासु चरण प्रणमी करी कम्म पयमि विस्तार ॥ वर" जविजन हित जणी प्रवचनने अनुसार ॥ ३ ॥ ढाल रामचंजके बाग ए देशी ॥ अष्ट कर्म तीर्थेश नांमे जिन्न कह्यारी ॥ हेय वस्तु परित्यज्य आतम गुण ग्रह्यारी ॥१॥ नाण दंशण आवर्ण वेदनी मोह बूरोरी । श्राजखो नाम गोत्र कर्मातराय चूरोरी ॥२॥ ज्ञाना वरणी कर्म दर्शना वर्ण तणोरी । वेदनीय अंतराय तीस कोमा कोमी नोरी ॥३॥ नाम कर्म गोत्र कर्म वीश कोमा कोमी हवेरी । आयु सागर तेतीस हिव मोहनीय युवेरी ॥४॥ सत्तरी कोमाकोमी सागर मान लण्योरी ॥ ए उत्कृष्ट स्थिति जोम केवली काल गण्योरी ॥५॥ जघन्य स्थिति पंचकर्म अंतर मुहुर्त पणोरी ॥ नाम गोत्र दोय कर्म आठ मुहुर्त गणोरी ॥ ६ ॥ अकषाय वेदनी वर्ण्य वेदनी कर्म वदेरी । बारे मुहुर्त्त मांन शास्त्रानुसार मुदैरी ॥ ७ ॥ नाणा वरण अंतराय पंच पंच जेद जुदारी । वेदनीय गोत्रकर्म दो दो लेद उदारी ॥७॥ दर्शना वरण नव नेद आयुच्यार विधेरी । मोहकर्म अमवीस सौत्रिकनामसधेरी ॥ ए॥ एक सो अचावन्न उत्तर प्रकृति कहीरी ॥ अष्टकर्मना जांण सर्व विकल्प सहीरी ॥१०॥
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