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ढाल || नणदल चुकले जोवन फिल रह्यो ए देशी || पाटे सम ज्ञानावरण के दर्शनावरण प्रतीहार जवियण कर्म विवेचन कीजिये | मधु लिप्तासि धारानी परे वेदनी कर्म मुदार । नविय ॥ १ ॥ मदिरा बाक समान वे मोह सुट महराण ॥ नवि० ॥ खोरे बंधी खाने सारखो आयुकर्म प्रमाण ॥ ज० क० ॥ २ ॥ चीतारे सम नाम कहीजे गोत्रकुंजार समान ॥ ज० ॥ श्रीधर जंकारी सम दाख्यो अंतरायकु ध्यान ॥ ज० क० ॥ ३ ॥ अष्टकर्म ए जावना वीर वदे व्याख्यान ॥ ज० ॥ कर्म संसार स्वरूप अकरम सिद्धि सुश्रान ॥ ज० क० ॥ ४ ॥ मिसासादन मिश्रा विरति देस विरति प्रमत्त 11 ० श्रप्रमत्त गुण अंत सवीमे करम बंध व सत्त क० ॥ ५ ॥
पूर अनुवृत्ति गुण में आयु वरज सप्त बंध ॥ ज० ॥ सुहुम संपराय दशम गणें विन मोहाय पट बंध ॥ ज० क० ॥ ६ ॥ उपसम खीए सजोगमें वेदनी बंध उदार ॥ ज० ॥ योगी गुण चन्दमें नहीं बंधत कर्म द्वार ॥ ज० क० ॥ ७ ॥ कर्म बंध हेतु का मिथ्यात अविरत जोय ज० ॥ क्रोध प्रमुख कपायश्री योग युगत च्यार होय ॥ ज० क० ॥ ८ ॥ पन्नवणण उपांग में कर्मस्थिति पद लेय ॥ ज० ॥ कर्म वेद पण वीसमें कर्म प्रकृति वेद ज्ञेय ॥ ज० क० ॥ ए ॥ कम्म पयमी कर्म ग्रंथ में कर्म तो निरधार ॥ ज० ॥ बंध सत्ता उदीरणा उदय प्रमुख परकार ॥ ज० क० ॥ १० ॥ एकसो
घावन थया चनत्थनत्त तप सार ॥ ज० ॥ तप उद्यापन इम करो पूजा अष्ट प्रकार ॥ ज० क० ॥ ११ ॥ ष्ट ज्ञानो
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