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(३१४) आराधतां । सिवसुख लहोमहिराण जी न ॥ ११ ॥ पनरनेद प्रसिद्ध । कर्म रहित सुखदायजी ॥ सिफ़ अनंत चतुकता। ध्यावो सिघलयलायजी न ॥ १२ ॥ पंचाचारने पालता परउपगार प्रधानजी ॥ शुद्ध सिद्धांत वखाणता आचारजश्रुतखानजी न० ॥ १३ ॥ गणतृप्ति करता चला । सूत्र अर्थ नादानजी । शिष्यादिकने थापता नमोउवझायसुजानजी ॥ १४ ॥ कर्म भूमिमां विचरता । रत्नत्रयनाधारजी ॥ सुमति गुपति मुनिपालता । निकषाया सुविचारजीन ॥१५॥ जिन प्रणीत जे सास्त्रमा । तत्व सद्गुण स्वरूपजी दरशन रयण प्रदीपने । धारोचितमां अनूपजी न० ॥ १६ ॥ जीवादिक पदार्थनो वोध स्वरूप विचारजी ॥ विनयकरि सीखो सदा । नापरे सर्व आधारजी न० ॥ १७॥ अशुन्नक्रियानो त्याग छ । सुन्न किरिया अप्रमादजी ॥ उत्तरगुण निरुक्तथी । लहोचरणनो स्वादजी न ॥ १८ ॥ सघन करमतमहरणकुं । नानुसमोतप जाणजी ॥ कषाय रहित बारजेदचै । तप पद मनमा आणजी न ॥ १५ ॥ ( ढाल ) ३ जी कपूर हुवे अति उजलो जी ए देशी । ए नवपद जिनधर्मनोजी सारजूत कहिवाय सिव सुखनो कारक सहीजी आराधो गुरु सहाय जविक जन सेवो जिन उपदेश पत्नणे प्रथम गणेश न ॥ २० ॥ ए नवपदथी नीपजैजी सिद्धचक्र यंत्रराज ॥ श्राराधीने सुखलह्योजी जिम श्रीपालमहाराज ज से ॥२१॥ तव पूरे मगधेसरुजी कुण श्रीपालनरेश किमयाराधिसुखपामीयोजी करुणा करो गणेश न. से० ॥ २२॥ गौतमस्वामि उपदिशेजी निसुणो
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