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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५६) धन तेह गिणी जे ॥ कृ०॥६॥ प्रनु दरस सरस सहि तोरो। अतिहरखित हुवो चित्त मोरो। जिम दीगं चंद चकोरो॥ कृ० ॥७॥ परतिख प्रनु पंचमे आरे । विषम महा लय संकट वारे । सहु सेवक काज सुधारे ॥ कृ ॥ ७॥ सेवो स्वामि सदा सुख दाई । कमणा न रहे घर काई।बाधे संपति सोज सवाई। कृ०॥ ए॥ नानिराय कुलांवर चंदा । नवि जन मन नयण आणंदा । शोलगे सुर असुर सुरिंदा ॥ कृ० ॥ १०॥ जयकारी रिषन जिनंदा । प्रह समधर परम आणंदा । वंदे श्रीजिनलक्ति सूरिंदा ॥ कृ ॥११॥ इति श्री झपन देवजी स्तवनं संपूर्णम्।। ॥अथ श्रीअजित शांति स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ मंगल कमला कंद ए । सुखसागर पूनिमचंद ए । जगगुरु अजिय जिणंद ए। शांतीसर नयणा नंद ए ॥ १ ॥ बिहुँ जिनवर प्रणमेव ए । बिहुं गुण गाइस संखेव । पुण्य जंमार नरे स ए । मानव जव सफल करेस ए ॥शा कोम हि लाख पचासए। सागर जिणसासण लास ए । रिषद जिणेसर बंस ए। जवज्काय सरोवर हंस ए॥३॥ण अवसर तिहां राजीयो ए । राजा जितशत्रु जग गाजीयो ए । विजया तसु घर नार ए। बिहुँ रमयति पासा सार ए॥॥ कूखहि जिन अवता ए। तिणराय मनाच्यो हार ए । उयर वस्यो दस मास ए । प्रनुपूरी जपणी आस ए ॥ ५॥ बिहुँ जण मन आणंदीयो ए । सुत नाम अजिय जिण तो दीयो ए । तिहु अण सयल जन्नाह ए। क्रम क्रम वधे जग नाह ए॥६॥ हंस धवल सारसतणी ए । गति सुखलित निज गति निरंजणी ए । मलपति चाले गेल ए। For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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