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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०४) ॥ ढाल ॥ ६॥ ए छिंडी किहां राखी ए देशी ॥ ॥ ए पांचेही वाद करंता । श्रीजिन चरणे आवे । अमीयरसे जिन वयण सुणीनें। आणंद अंग न माये रे॥५०॥ प्राणी॥ समकित मति मन आयो रे । नय एकांत मताणो रे । ते मिथ्या मत जाणो रे । आंकणी ॥ ए पांचे समुदाय मित्यां विण । कोई कारज न सीके । अंगुली जोगे कवलतणीपर । जे बूके ते रीफे रे ॥ ५१ ॥ प्राणी ॥ आग्रह आणी कोई एकनें एहमां दिये बमाई । पिण सेनमिल सकल रणांगण । जीते सुनट लमाई रे ॥ ५५ ॥ प्रा० ॥ तंतु सनावे पट उपजावे । कालक्रमें वाई । जवतव्यता होय ते नीपजे । नहीं तो विघन घणाई रे ॥ ५३ ॥ प्राणीस० ॥ तंतु वाय उद्यम नोक्तादिक । नाग्य सवल सहकारी । ए पांचे मिल सकल पदारथ । उत्पत् जोवो विचारी रे॥५४॥प्रा॥ नियति बसें हलुकर्म अईने । निगोद थकी नीकलियो । पुण्य मनुज जवादिक पामी । सदगुरुनें जई मिलियो रे ॥ ५५ ॥ प्राण ॥ लव तिथिनो परिपाक श्रयो तब । पंमित वीर्य जलसियो । जव्य स्वनावे शिव गति गामी । शिव पुर जईनें वसियो रे । ॥ प्रा० ॥ वर्षमान जिन इणपरि वीनवे । सासन नायक गावो । संघ सकल सुखदाई जे हथी । स्यादवाद रस पावो रे॥५॥मा० ॥ (कलश)॥श्म धर्म नायक मुगति दायक वीरजिनवर संथुएयो । सय सतर संवत वन्हि लोचन वर्ष हर्ष धरीघणो । श्री विजयदेवसूरींद पट धर विजय प्रनु मुणिंद ए । कीर्ति विजय वाचक सीस इण परि For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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