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(१०३) करी मूषकतसु मुखमां । दीये आपणुं देह । मार्ग सहि वन नाग पधाख्या कर्म मर्म जोवो एह ॥ ३५ ॥ चेतः ॥
॥ ढाल ५ मी तो चढियो घण माण गजे ए चाल ॥
॥ हिव उद्यम वादी न0ए । ए च्यारे असमत्थतो । सकल पदारथ साधवाए । उद्यम एक समरत्थतो ॥ ४० ॥ उद्यम करतां मानवी ए । स्युं नवि सीजे काजतो । रामें रयणायर तणी ए । लीधो लंका राजतो ॥४१॥ करम नियतिने अनुसर ए । जेहमां सत्व न होय तो । देवल वाघ सुख पंखिया ए । पिउ पैसंता जोय तो ॥४२॥विण उद्यम किम नींकले ए। तिलमाहेश्री तेल तो । उद्यम थी ऊंची चढे ए । जोवो एकेप्रिय बेल तो ॥ ४३ ॥ उद्यम करतां इक समेंए । जेह न सीके काज तो। ते फिर उद्यमश्री हुवे ए । जो नवि आवे वाजतो ॥४४॥ उद्यम करि ऊखां विना ए । नवि रंधाये अन्न तो ।
आवी न पके कोलीयो ए। मुखमां खेपे जतन्न तो ॥१५॥ कर्म पूत उद्यम पिता ए । उद्यम कीधा कर्म तो । उद्यम थी दूरे टले ए। जो उ कर्मनो मर्म तो ॥ ४६॥ दृढ प्रहारी हत्या कररी ए । कीधा पाप अनंत तो । उद्यम श्री षट् मासमां ए ।
आप श्रया अरिहंत तो ॥४७॥ टीपे टीपे सरवर नरे ए। काकरे काकरे पालतो । गिरि जेहवा गढ नीपजे ए। उद्यम सक्ति निहाल तो ॥ ४० ॥ उद्यम थी जल बिंबुड ए। करे पाहाणमा गमतो । उद्यमश्री विद्या नणे ए । उद्यम जोमे दामतो ॥४॥
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