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एम० ॥ सुहो देईनें सुर चाहयो । अपने थानक पछुतो जी । पाटण माहें सारथ बाहू । हीं तुरकनें जो तो जी ॥ १६ ॥ एम० ॥ तुरके जातां दीगे गोठी । चोखा तिलक जिलामे जी । संकेत पहुतो साचो जाणी । बोलावे बहुलामे जी ॥ १७ ॥ एम० ॥ मुज घर प्रतिमा तुंकनें पुं । पास जिलेसर के जी। पांचसें टक्का जोमुक्त श्रापे । मोलन मांगुं फेरी जी ॥ १८ ॥ एम० || नांगो देई प्रतिमा लेई । थानक पडतो रंगे जी । केशर चंदन मृगमद घोली विधिसुं पूजा रंगे जी ॥ १५ ॥ एम० ॥ गादी रूमी रूनी कीधी । ते मांहि प्रतिमा राखे जी । अनुक्रम श्रव्या परिकर मांहे। श्रीसंघनें सुर साखे जी ॥२०॥ एम० ॥ उन्नव दिन दिन अधिका थायें । सत्तर नेद सनात्रो जी । ठाम गमना दरशण करवा । वे लोक प्रजातो जी ॥ २१ ॥ एम० ॥ डुड़ा || इक दिन देखे अवधि | परिकर पुरनो जंग | जतन करूं प्रतिमा तयो । तीरथ अबे नंग ॥ २२ ॥ सुहणो आपे सेवनें । थल अटवी उतारु । महिमा यास्येति घणी । प्रतिमा तिहां पुचारु ॥ २३ ॥ कुशल खेम तिहां वे । तुऊनें मुकनें जाणि । संका बोकी काम कर । करतो मकर संकाणि ॥ २४ ॥ ढाल || पास मनोरथ पूरण करे । वाहण एक वृषन जोतरे । परिकरथी परियाणो करे । इक थल चढ बीजे ऊतरे ॥ २५ ॥ बारकोस आव्या जेतले | प्रतिमा न विचाले तले । गोठी मनह विमा सा थई । पास भुवन मंगावूं सही ॥ २६ ॥ श्रटवी किम करुं प्रयाण । कुटको कोई नदी से पाहा । देवल पास जिनसरतणो मंकावुं
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