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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४३ ) - लाल उ०, संख्यायें एक एक प्रत्येके गुण निला, हो० प्रत्ये० ॥ पद एक लाख चौमाल सहस तेउत्तरा, हो० स०, पदनें उदग्र संख्याता अक्षरा, हो० सं० ॥ ४ ॥ जाप्य चूर्णि नियुक्ती करी सोहे सदा, हो० करी०, सुणतां जेद गंजीर त्रिपत न होय कदा, हो० त्रि० ॥ जेह नमावै गरि अन्तरगति हसी, हो० त०, जल वरसंते जोर कुण न दुवे खुसी, हो० कु० ॥ ९ ॥ जाग्यो धरम सनेह जिणंदसुं माहरो, हो० जि०, तजिया शास्त्र मिथ्यात सुत्र जाल्यो, खरो हो० सू ॥ जिम मालती लहे भृंग करीने नवि रहे, हो० क०, ईश्वरशिर सुरगंग तजी परि नवि वहे, हो० त० ॥ ६ ॥ ए प्रवचन निग्रंथतणो जुगते वको, हो० तर, साकर सेलकी प्राखथकी पिए मीठो, हो० थ० ॥ स्युं कहिये बहुवात विनयचं इम कहै, हो, वि० एहना सुने जव श्रोता प्रति गहरा है, श्रो० ॥ १॥ इति समवायांग०स०सं० " ॥ अथ ५ ॥ भगवतीसूत्र सज्झाय लिख्यते ॥ ॥ ढाल पंथी मानी ॥ पंचम अंगे जगवती जालिये रे जिहा जिन वरना वचन अथाह रे । हिमवंत परवत सेती नीकट्या रे, मानुं परतिख गंग प्रवाह रे | पं० ॥ १ ॥ सूरन्नत्ती नामे परगको रे, जेहनी है उद्दाम उवांग रे ॥ सूत्रतपणी रचना दरिया जिसी रे, महिला अरथ ते सजल तरंग रे ॥ पं० ॥ २ ॥ इहां तो सुयखंध एक अतिजलो रे, एकसो एक अध्ययन उदार रे || दश हजार उद्देसा जेहना रे, जिहां किए प्रश्न बत्तीस हजार रे | पं० ॥ ३ ॥ पद तो दोय लाख रथे जा रे, ऊपर सहस व्यासी जाए रे || लोकालोक स्वरू For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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